केला की खेती। kela ki kheti। केला की खेती कैसे करें। kela ki kheti kaise karen। आदि के बारे में इस लेख में पूरी जानकारी दी गई है।
लोगों द्वारा उपभोग में लाए जाने वाले फलों में केले का मुख्य स्थान है। केले का फल स्वादिष्ट, कोमल और मीठा होता है। भारत में केले का उत्पादन और उपभोग उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी संस्कृति तथा सभ्यता है। हमारे भारत देश में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार तथा उत्तर प्रदेश में केला हजारों हेक्टेयर भूमि में लगाया जाता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से केले का आम के बाद दूसरा स्थान है।
केले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:-
केला एक उष्ण प्रदेशीय फल है यह अधिकतर नम जलवायु में फलता फूलता है और केले में पाले को सहन करने की क्षमता होती है लेकिन तेज हवा से पौधों को हानि पहुंचती है। केले को भिन्न भिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जाता है।
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केला की खेती के लिए उपयुक्त भूमि:-
गहरी, उपजाऊ, अधिक पानी की शक्ति रखने वाली दोमट भूमि इसके लिए उपयुक्त रहती है तालाब के किनारे भारी तथा नम भूमि में भी केला अच्छी उपज देता है लेकिन साधारण तौर पर केला किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन उस भूमि में गोबर की खाद पर्याप्त मात्रा में देने के लिए उपलब्ध हो तथा साथ ही पानी का अच्छा निकास हो।
केला की खेती के लिए उन्नत किस्में:-
केला की किस्मों को मुख्य रूप से दो भागों में बांट दिया गया है।
फलों के लिए
शाकभाजी के लिए
फलों के लिए:-
पूवन, कर्पूर, चक्रकेलि, मर्तमान, चम्पा, अमृत सागर, बसराई, ड्वार्फ, सफेद बेलची, लाल बेलची, रजेली, रसथाली, शिरुमलाई, कदली, पचनदन, हरीछाल, आदि।
शाकभाजी के लिए:-
नेंद्रन, मंथन, माइंडोली, पछमोंथ, हजारा, बाथिस, ग्रासमाइकेल, चम्पा, चिनियां, राय केला, अमृतमान, काबुली, कोलंबो, मुथेली, बम्बई, आदि।
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केला की खेती के लिए खाद और उर्वरक:-
केला की खेती करते समय प्रत्येक पौधे के लिए प्रतिवर्ष 250 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस और 200 ग्राम पोटाश की जरुरत होती है। नाइट्रोजन को चार बराबर मात्राओं में अगस्त, सितंबर, मार्च तथा अप्रैल में देनी चाहिए। फॉस्फोरस की पूरी मात्रा पुत्तियां लगाने के 2 या 3 दिन पहले गढ्ढों में मिला देनी चाहिए। पोटाश की आधी मात्रा नाइट्रोजन के साथ अगस्त में और शेष आधी मात्रा अप्रैल में देनी चाहिए। केले की अधिकतम उपज पाने के लिए 18 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति पौधा लगाते समय और 2.250 किलोग्राम अंडी की खली टॉपड्रेसिंग द्वारा तीन बार में दे देनी चाहिए।
केला की खेती में प्रवर्धन:-
केला अधोभूस्तारी मतलब की सकर के द्वारा प्रवर्धित किया जाता है ये दो प्रकार के होते हैं- तलवार सकर और पानी वाले सकर। तलवार सकर की पत्तियां कम चौड़ी तलवार के आकार की होती हैं और नए पौधे तैयार करने के लिए इनको सबसे ज्यादा अच्छा माना जाता है पानी वाले सकर की पत्तियां चौड़ी होती हैं और पौधे भी कमजोर होते हैं अधोभूस्तरी ऐसे पौधों से लेना चाहिए जो ओजस्वी तथा परिपक्व हों और किसी भी प्रकार के रोग तथा कीड़ों से प्रभावित नहीं हों। 3 से 4 महीने पुराने सकर प्रवर्धन के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं केले के प्रकंद से भी नए पौधे तैयार हो सकते हैं बहुत अधिक पौधे जल्द तैयार करने के लिए पूरा प्रकंद या इसके टुकड़े काटकर प्रयोग करना चाहिए यह ध्यान रखें कि प्रत्येक भाग में एक कली रहे जहां से नया प्ररोह निकल सके इनसे पौधा बनने में थोड़ा समय ज्यादा लगता है लेकिन पैदावार पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है पुत्तियां मात्र पौधे की जड़ों से काटकर निकालते हैं साधारण तौर पर 60 से 90 सेन्टीमीटर की पुत्तियां उपयुक्त रहती हैं।
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केला की खेती में अधोभूस्तारी या पुत्तियोंं का रोपण:-
केले के पौधे खेत में वर्षा ऋतु में जुलाई से लेकर सितंबर तक रोपे जाते हैं। केले गढ्ढे अथवा नालियों में रोपे जाते हैं केला को रोपने के लिए मई में 1/2 व्यास के 1/2 मीटर गहरे गढ्ढे 2×1.5 मीटर की दूरी पर खोद लेने चाहिए और उनको गोबर की खाद में मिट्टी मिलाकर जुलाई के प्रारंभ में भर देना चाहिए यदि नालियों में केला रोपना हो तो 50 सेन्टीमीटर चौड़ी तथा 50 सेन्टीमीटर गहरी नालियां 2 मीटर की दूरी पर खोद लेनी चाहिए तथा इनमें प्रति हेक्टेयर 200 क्विटंल गोबर की खाद डाल देनी चाहिए इसके बाद में इन गड्ढों में 1.5 मीटर की दूरी पर नालियों के बीच में केले की पुत्तियां रोप देनी चाहिए रोपाई से पहले प्रत्येक पुत्ती को तेज औजार से काट दिया जाता है और भूमिगत तने के कटे हुए भाग को सेरेसान या एगलोल के 0.25 प्रतिशत घोल में एक मिनट तक डुबाते हैं।
फरवरी-मार्च का समय भी खेत में केला रोपने के लिए उत्तम रहता है लेकिन यह उन्ही जगहों में सम्भव है जहां पर पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो।
केला की खेती में निकाई-गुड़ाई और देखभाल:-
केले की पुत्तियां रोपने के तुरन्त बाद खेत में सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके बाद में इस बात का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए कि खेत में खरपतवार न होने पाएं। इसके लिए केले के खेत में कई बार निकाई-गुड़ाई करने की जरुरत होती है। निकाई-गुड़ाई द्वारा केले की जड़ों के फैलाव में भी मदद मिलती है। अतः पौधों के प्रारंभिक जीवन में निकाई-गुड़ाई का और भी अधिक महत्व है बाद में तो पौधों के इधर उधर 2 से 3 पत्तियां निकल आने और पौधों की पत्तियों के बढ़ जाने पर उनकी जड़ों के निकट छाया रहने के कारण खरपतवार नहीं होते हैं।
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केला की खेती में सिंचाई:-
केला की खेती में सिंचाई की बहुत जरुरत होती है। वर्षा ऋतु के बाद जाड़े के मौसम में 25 से 30 दिनों के अंतर से केले के खेत में सिंचाई करते रहना चाहिए इस मौसम की सिंचाई से केले में पाले द्वारा हानि का भय नहीं रहता है गर्मी के मौसम में अपेक्षाकृत जल्दी जल्दी सिंचाइयों की जरुरत होती है अतः जरुरत के अनुसार 15 से 20 दिन के अंतर से केले की फसल की सिंचाई की जाती रहनी चाहिए। वर्षा ऋतु में यदि बारिश में बहुत देरी हो जाए तो फसल में सिंचाई कर देनी चाहिए असल में जिस भी खेत या भूमि में केला बोया गया हो उसे कभी भी सूखने नहीं देना चाहिए।
केला की खेती में खरपतवार और उनका नियंत्रण:-
केला की खेती करते समय कई खरपतवार उग आते हैं जिनका नियंत्रण या रोकथाम निकाई-गुड़ाई से ही हो जाता है।
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केला की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम:-
केला की खेती में कई रोग लगते हैं लेकिन उनमें से कुछ प्रमुख के बारे में ही जानकारी दी गई है।
पनामा रोग:-
केला का पौधा जब पांच महीने का हो जाता है तब यह रोग अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है सबसे पहले नीचे की पुरानी पत्तियों पर हल्की पीली धारियां बनती हैं। और इसके बाद में दो प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। एक प्रकार के लक्षण में पत्तियों का पीलापन बढ़ता जाता है और वे टूटकर लटक जाती हैं और बाद में पौधा एकदम सूख जाता है तथा दूसरे प्रकार के लक्षण में पत्तियां हरी ही रहती हैं परन्तु टूटकर लटक जाती हैं।
रोकथाम:-
जिस भी खेत में यह रोग लग गया हो उसमें केले की खेती 3से5 वर्षों तक कर देनी चाहिए। प्रतिरोधी किस्में जैसे कवेंडिश जाति के केले, अमृतसागर तथा बसराई आदि उगानी चाहिए। तथा नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए।
अन्त विगलन:-
इस रोग में पौधों के अन्दर की पत्तियां गल जाती हैं और नई पत्तियों के निकलने में रुकावट पैदा होती है। इस प्रकार से पत्तियों का गलना अन्दर की ओर बढ़ता चला जाता है और फिर फूल नहीं निकल पाता है यह रोग भी फफूंदी द्वारा उत्पन्न होता है।
रोकथाम:-
खेत में पानी का अच्छा निकास होना चाहिए। तथा पौधों को उचित दूरी पर लगाना चाहिए। और बाग में सूर्य की रोशनी भली-भांति पहुंचनी चाहिए। व जैसा कि फल विगलन रोग की रोकथाम के लिए दवाओं का छिड़काव बताया गया है वैसा ही इसके लिए भी प्रयोग करें।
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केला की खेती में लगने वाले कीड़े और उनकी रोकथाम:-
केला की खेती करने में कीड़े भी कई प्रकार के लगते हैं लेकिन यहां पर प्रमुख कीड़ों का ही वर्णन किया गया है।
तना छेदक:-
इस कीड़े की सुंडिया पौधे के तने में छेद करती हैं जिसके कारण सड़ाव हो जाता है।
रोकथाम:-
प्रेरिक ग्रीन को 6 गुना आटा मिलाकर जहरीली गोलियों के रूप में छिड़क देना चाहिए। प्रभावित पौधों में प्रति पौधा 30 से 50 ग्राम लिंडन 1.3% धूल भूमि में मिला देनी चाहिए।
फल छेदक:-
यह कीड़ा फली में नीचे की ओर से छिद्र करता है और अंदर फली में सुरंग बना देता है जिसके कारण फल सड़ जाते हैं।
रोकथाम:-
0.25 प्रतिशत सुमिसीडीन का छिड़काव करना चाहिए।
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केला की खेती में फल और फूल लगना:-
दक्षिण और पश्चिम भारत में केले की अगेती किस्में रोपाई के लगभग सात महीने बाद फूलने लगती हैं। केला फूलने के अगले सात माह के पहले फलियां पककर तैयार हो जाती हैं। जिस भी पेड़ पर एक बार घैर आ जाती है उस पर दोबारा घैर नहीं लगती है। अतः घैर तोड़ने के बाद उस पेड़ को भूमि की सतह से काट दिया जाता है। तना काट देने से बगल की पुत्तियां जल्द ही विकसित हो जाती हैं।
केला की कटाई:-
केले पेड़ पर गुच्छों के रूप में निकलते हैं और केले के गुच्छों को ही घैर कहते हैं घैर को इस प्रकार से काटा जाता है कि घैर के साथ लगभग 30 सेन्टीमीटर डंठल भी कट जाएं।
केला की उपज:-
केला के एक पेड़ से केवल एक घैर निकलती है इस प्रकार एक हेक्टेयर खेत में लगभग 3500 घैर निकलती हैं एक घैर में लगभग 50 से 100 फल तक लगते हैं। इस प्रकार लगभग एक हेक्टेयर में लगभग 275 क्विटंल केला प्राप्त होता है।
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दोस्तों/किसान भाईयों आपने इस लेख में केला की खेती। kela ki kheti। केला की खेती कैसे करें। kela ki kheti kaise karen। के बारे में पूरी जानकारी ली, तो अगर आप ऐसे ही कृषि से सम्बंधित सभी जानकारियां सबसे पहले पाना चाहते हैं तो लाल रंग की घंटी को क्लिक करके सब्सक्राइब करें।
केला की खेती से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (Q&A):-
केला की खेती करने की विधि
केला की खेती करने की विधि में प्रवर्धन करके पुत्तियोँ का रोपण किया जाता है
केला की उपज
केला की एक हेक्टेयर में लगभग 275 क्विटंल तक उपज हो जाती है।
केला की फलों के लिए उन्नत किस्में कौन सी हैं?
पूवन, कर्पूर, चक्रकेलि, मर्तमान, चम्पा, अमृत सागर, बसराई, ड्वार्फ, आदि केला के फल लेने के लिए उन्नत किस्में हैं।
केला की शाकभाजी के लिए उन्नत किस्में कौन सी हैं?
नेंद्रन, मंथन, माइंडोली, पछमोंथ, हजारा, बाथिस, ग्रासमाइकेल, आदि केला की शाकभाजी के लिए उन्नत किस्में हैं।