दोस्तों, किसान भाईयों इस लेख में हम आपके लिए लेकर आए हैं प्याज की खेती की पूरी जानकारी। प्याज की खेती किस प्रकार से करें जिससे आप बहुत अच्छी कमाई कर सकें, आइए जानते हैं।
प्याज एक भूमिगत तना है। प्याज शाक भाजी के अलावा मसाले के रुप में भी प्रयोग होती है प्याज के प्रसिद्ध होने का कारण, इसमें उपस्थित बहुत से पौष्टिक तत्व हैं। जो कि कई रोगों का निवारण रखने का गुण भी रखते हैं। प्याज हैजा और लू आदि से बचाता है यह रक्तशोधक तथा रक्तवर्धक औषधि भी है।
प्याज की खेती के लिए उपयुक्त भूमि:-
प्याज की खेती वैसे तो हर तरह की भूमियों में की जा सकती है। परंतु बलुई दोमट या दोमट मिट्टी में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। और खासकर दोमट मिट्टी में प्याज की खेती बहुत अच्छी तरह से होती है और ध्यान में रखना चाहिए कि भारी भूमियों में प्याज के कंद की बढ़ोतरी अच्छी नहीं होती है इसलिए भारी भूमियों में इसकी खेती न ही करें।
प्याज की खेती के लिए भूमि की तैयारी:-
प्याज के लिए भूमि की गहरी जुताई की जरुरत नहीं पड़ती है क्योंकि इसकी जड़ें बहुत गहरी नहीं जाती हैं लगभग 4से5 बार की जुताई पर्याप्त होती है हर एक जुताई के बाद खेत में पटेला घुमा देना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत की तैयारी के समय ही उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए।
प्याज की खेती के लिए उन्नत किस्में:-
पूसा रेड, पूसा रतनार, निफाद-53, एग्रीफाउंड डार्क रेड, पटना रेड, उदयपुर-102, नासिक रेड, वी एल-67, वी एल-72, यलो ग्लोब, पटना सफेद, पूसा सफेद गोल, नासिक व्हाइट, सलेक्शन-131, अर्का निकेतन, अर्का कल्याण, आदि अच्छी प्रकार की किस्में मानी जाती हैं।
भीमाराज, भीमा रेड, भीमा सुपर : यह प्याज की तीनों प्रजातियां खरीफ ऋतु के लिए विकसित की गई हैं जिनकी उपज 400 से 450 क्विंटल/हेक्टेयर है। तथा यह कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, आदि क्षेत्रों के लिए बहुत बढ़िया हैं।
ध्यान रखें:-
लाल छिलकों वाली किस्मों की भंडारण क्षमता सफेद और पीले छिलके वाली किस्मों की अपेक्षा अधिक होती है सफेद छिलके वाली किस्में सुखाने के लिए बहुत उपयुक्त होती हैं तथा इनका अधिकतर प्रयोग आयुर्वेदिक दवाइयों के बनाने में किया जाता है।
प्याज के बीज की बुवाई:-
प्याज की खेती में उसकी रोपाई की जाती है तथा उसके लिए प्याज की नर्सरी तैयार की जाती है। किसान भाईयों प्याज के बीज की बुवाई/रोपाई आगे दिए गए चरणों में करते हैं।
प्याज की खेती करने से पहले बीज का चुनाव करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब आप प्याज के बीज का चुनाव कर रहे हों तो किसी प्रमाणित कम्पनी का और अच्छी रेटिंग वाला ही बीज खरीदें।
बीज का उपचार:-
बीज को फफूंदी नाशक दवा जैसे- केप्टान, थायराम, आदि से 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लें।
बीज की बुवाई का समय:-
मैदानी क्षेत्रों में:-
मैदानी क्षेत्रों में बीज को नर्सरी में अक्टूबर के अन्त से नवम्बर के मध्य तक बोना चाहिए। और खरीफ फसल की बुवाई जून में करते हैं।
नीचे पहाड़ी क्षेत्रों में (2000 मीटर तक):-
अक्टूबर में बीज बोते हैं।
ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में (2000 मीटर से ऊपर):-
फरवरी – मार्च में बीज बोते हैं।
बीज को पौधशाला में उचित समय पर ही बोया जाना चाहिए। अधिक अगेती बुवाई करने पर गांठे अच्छी नहीं बनती हैं और इनमें डंठल निकल आते हैं।
बीज की मात्रा:-
एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई करने के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज की नर्सरी पर्याप्त रहती है।
पौध तैयार करना:-
साधारण रूप में एक हेक्टेयर की रोपाई करने के लिए 500 वर्गमीटर भूमि में तैयार की गई पौध पर्याप्त रहती है। पौधशाला किसी ऐसे स्थान पर बनानी चाहिए जहां पर सिंचाईं तथा पानी के निकास का अच्छा प्रबंध हो सके। जिस भूमि में पौध तैयार करनी हो उसे अच्छी प्रकार से भुरभुरी बना लें। अब इस भूमि में पौध तैयार करने के लिए 5 मीटर लंबी तथा 1 मीटर चौड़ी क्यारियां भूमि से लगभग 15-20 सेन्टीमीटर ऊंची बना लेनी चाहिए। हर एक क्यारी में 10 से 15 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद तथा 10 से 15 ग्राम दानेदार फ्यूराडान अच्छी प्रकार से मिट्टी में मिला देनी चाहिए और इसके बाद में क्यारियों को समतल बना लेना चाहिए। क्यारियां तैयार करने के बाद बीज को उपचारित कर लें। और उपचारित बीज को तैयार क्यारियों में सूखी राख या मिट्टी में मिलाकर समान रूप से बिखेर दें और मिट्टी तथा गोबर की सड़ी खाद का मिश्रण क्यारियों में बुरककर बीज को अच्छी प्रकार से ढक दें। अच्छा तो यह रहेगा की क्यारियों में 8 से 10 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइने खींचकर बीज को लगभग डेढ़ सेंटीमीटर की गहराई पर बोकर मिट्टी से ढक दें। बीज बोने के बाद हजारे से या किसी बाल्टी में पानी भरकर हल्की सिंचाई कर दें। क्यारियों को सूखी घास की हल्की परत से ढक दें। एक दिन के अंतर से सिंचाई करते रहना चाहिए जब बीज का जमाव हो जाए तो घास की परत को हटा देना चाहिए ताकि छोटे पौधों को धूप तथा हवा लग सके। आवश्यकता के अनुसार खरपतवार निकालते रहना चाहिए। डाईथेन एम-45 दवा का 0.25% का घोल बनाकर पौधों पर एक-दो छिड़काव कर देने से बीमारी आदि का भय नहीं रहता है। बुवाई के लगभग 6 से 7 सप्ताह बाद पौधे रोपाई योग्य हो जाते हैं क्योंकि तब तक पौधे लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर के हो जाते हैं।
पौध की रोपाई:-
तैयार हुए खेत में पौध की रोपाई से पहले सिंचाई के साधन के अनुसार क्यारियां तथा सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिए क्यारियों में पौध की रोपाई के लिए रस्सी की मदद से 15 सेन्टीमीटर की दूरी पर लाइनें बना लेनी चाहिए और इन लाइनों में पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर रखते हुए 2 से 2.5 सेन्टीमीटर की गहराई पर पौधे की रोपाई करें और ध्यान में यह भी रखना चाहिए, कि एक जगह पर एक से अधिक पौधे नहीं लगाएं। पौध की रोपाई, जहां तक संभव हो दोपहर के बाद ही करनी चाहिए। रोपाई के तुरंत बाद ही हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए मैदानी क्षेत्रों में रोपाई मध्य दिसम्बर से मध्य जनवरी तक जरुर कर देनी चाहिए फरवरी महीने में भी प्याज की रोपाई करते हैं रोपाई करने से पहले पौधे के ऊपर के भाग को काट देना चाहिए जिससे पौधों को स्थापित होने में मदद मिलती है।
प्याज की खेती के लिए खाद और उर्वरक:-
रोपाई से 3 से 4 सप्ताह पहले खेत की तैयारी के समय 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिए उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के अनुसार ही करना चाहिए यदि मिट्टी की जांच संभव ना हो सके तो बलुई दोमट भूमि में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, 100 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा को आखिरी जुताई के समय खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए तीनों उर्वरकों के मिश्रण को कुंड में 5 से 7 सेंटीमीटर गहरा डाल दिया जाता है। नाइट्रोजन की बची शेष मात्रा को रोपाई के एक महीने बाद खड़ी फसल में देते हैं।
प्याज की खेती के लिए सिंचाई और जलनिकास:-
अगर आप प्याज की अच्छी से अच्छी उपज पाना चाहते हैं तो आपको अपने खेत में पर्याप्त नहीं बनाए रखना जरूरी होगा। सिंचाइयों की संख्या मिट्टी की किस्म और मौसम पर निर्भर करती है प्रयोगों में देखा गया है कि फसल की प्रारंभिक अवस्था में प्याज को कम पानी की जरुरत पड़ती है। लेकिन बाद में ज्यादा सिंचाईयां करनी पड़ती हैं। साधारण रूप में प्याज को 10 से 12 सिंचाइयों की जरुरत पड़ती है सर्दियों के दिनों में 12 से 15 दिनों के अंतर पर और गर्मियों में 7 से 8 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई पूरे खेत में एक समान और हल्की करनी चाहिए। प्याज के खेत में कभी भी जरुरत से ज्यादा पानी नहीं भरने देना चाहिए नहीं तो कंद फट सकते हैं और सड़ भी सकते हैं इसलिए जरुरत से ज्यादा पानी खेत से निकाल देना चाहिए।
प्याज की खेती में निकाई-गुड़ाई:-
प्याज की फसल में पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी इतनी कम होती है कि हांथ से निकाई-गुड़ाई करना बहुत कठिन हो जाता है निकाई-गुड़ाई करते समय विशेष ध्यान की जरुरत होती है ताकि कम से कम संख्या में पौधें कटे या टूटें।
प्याज की फसल में खरपतवार और उनका नियंत्रण:-
प्याज की फसल में मुख्य रूप से बथुआ, खरतुआ, मोरेला, प्याजी, मोथा, चिरायता, मकड़ा, दूब, जंगली चौलाई, सत्यानाशी, आदि खरपतवार उगते हैं जिनको खेत से बाहर निकलना जरुरी होता है।
खरपतवारों को निकाई-गुड़ाई करके निकाला जा सकता है। अच्छा तो यह रहता है कि खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग किया जाए। टोक ई -25 की 6 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के बाद छिड़काव करने से खरपतवार नहीं उगते हैं और भी कई रसायनों का प्रयोग किया जाता है लेकिन किसी भी रसायन का प्रयोग करने से पहले एक बार विशेषज्ञ की सलाह जरुर ले लें।
प्याज की फसल में लगने वाले रोग तथा उनका नियंत्रण:-
प्याज में लगने वाले प्रमुख खतरनाक रोग तथा उनकी रोकथाम के उपाय आगे दिए गए हैं।
बैंगनी धब्बा रोग:-
यह रोग पत्तियों, बीज स्तंभों, और प्याज की गाठों पर लगता है। रोगी भाग पर छोटे, सफेद धंसे हुए धब्बे बनते हैं, जिनका बीच का भाग बैंगनी रंग का होता है। इन धब्बों की सीमाएं लाल या बैंगनी रंग की होती हैं तथा उनके चारों ओर कुछ दूरी पर फैला एक पीला क्षेत्र पाया जाता है।
रोकथाम:-
बीज को थायराम नामक दवा से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।इंडोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 8से10 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें और लगभग 4-5 छिड़काव करें।
मृदु रोमिल आसिता रोग:-
इस रोग के लक्षण पत्तियों पर धब्बों के रुप में होते हैं ये धब्बे आकार में अंडाकार से लेकर आयताकार तक होते हैं इनका रंग पीला होता है जिसके कारण पत्तियों में हरे पदार्थ की कमी के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं रोग के प्रभाव से पत्तियों का रोगग्रस्त भाग सूख जाता है रोगी पौधे से कंद छोटे-छोटे प्राप्त होते हैं।
रोकथाम:-
इंडोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोग के लक्षण दिखाई देते ही छिड़काव करें इसके बाद 7 से 8 दिन के अंतर से छिड़काव करें।
प्याज की फसल में लगने वाले कीड़े तथा उनका नियंत्रण:-
प्याज की फसल को कई कीड़े नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन हम यहां पर कुछ महत्त्वपूर्ण कीड़ों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
थ्रिप्स या भुनगा कीट:-
प्रौढ़ कीड़ा लगभग एक मिलीमीटर लम्बे, बेलनाकार, व पीले रंग के होते हैं। प्रौढ़ व शिशु दोनों ही प्याज की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इनके खरोंचने तथा चूसने वाले मुखांग होते हैं ये पत्तियों की बाहरी परत पर खुरचने पर निकले हुए रस को चूसते हैं। जब इनका प्रकोप अधिक होता है तो पत्तियों की नोक कत्थई रंग की हो जाती है और सूखी हुई सी प्रतीत होती है। बाद में पूरा पौधा पीला या भूरा होकर, सूखकर जमीन पर गिर जाता है।
रोकथाम:-
इस कीड़े की रोकथाम के लिए 0.15% साइपरमेथ्रिन अथवा 0.2% सेविन का 600 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। अथवा 750 मिली• मैलाथियान 50 ईसी 750 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
रिजका की सूंडी:-
यह कीड़ा भी प्याज की फसल को बहुत हानि पहुंचाता है इस कीड़े की सूंडी लम्बी होती है और इसका रंग हरा-भूरा होता है ऊपर की तरफ काले रंग की टेढ़ी-मेढ़ी धारियाँ होती हैं बगल में पीली धारियां होती हैं यह कीड़ा प्याज की खेती, मिर्च की खेती, बैंगन की खेती, मूली की खेती, आदि में उनकी पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाता है।
रोकथाम:-
कीड़े के अंडों तथा सूंडियों को इकठ्ठा करके नष्ट कर दें।ज्यादा प्रकोप होने पर 0.15 प्रतिशत साइपरमेथ्रिन के घोल का फसल पर छिड़काव करें।फसल पर 4 प्रतिशत सेविन धूल का भी बुरकाव कर सकते हैं।
प्याज की खुदाई:-
जब पत्तियां सूख कर गिरने लगें लेकिन पूरी तरीके से सूखी न हों बल्कि उनका लगभग 70 प्रतिशत भाग सूख चुका हो तो खुदाई करनी चाहिए। प्याज की पत्तियों को पैरों से कुचल देने पर फसल कुछ जल्दी पक जाती है लेकिन ऐसा तभी करना चाहिए प्याज की पत्तियों को पैरों से कुचल देने पर फसल कुछ जल्दी पक जाती है लेकिन ऐसा तभी करना चाहिए जब गांठें पूरी तरह से बढ़ चुकी हों और फसल पक चुकी हो कच्ची फसल को कुचल देने पर गांठें छोटी रह जाती हैं और भण्डारण में भी वे जल्दी खराब होने लगती हैं देर से खुदाई करने पर गांठों से जड़ें निकलने लगती हैं जिसके कारण बाजार में उसकी अच्छी कीमत नहीं मिलती है हल्की भूमि में गांठों को हांथ से खींचकर निकाला जा सकता है यदि भूमि कड़ी हो तो खुर्पी या कुदाली की मदद से खुदाई कर सकते हैं।
प्याज की फसल में बोल्टिंग:-
गांठ के लिए उगाई जाने वाली फसल में ही कभी-कभी पुष्प डंठल निकल आते हैं, जिससे प्याज की गुणवत्ता घट जाती है, पुष्प डंठल का निकलना ही बोल्टिंग कहलाता है। इस प्रकार के डंठल ही गांठ में एकत्रित भोजन का उपयोग करते हैं जिसके कारण प्याज हल्की और तंतुयुक्त हो जाती है तापमान की विभिन्नता, बीज की बेकार किस्म, कमजोर भूमि, पौध की आयु, पौधों की आपस की दूरी, आदि बोल्टिंग के कारण हो सकते हैं जल्दी रोपी गई फसल में बोल्टिंग ज्यादा होता है।
प्याज की उपज:-
उन्नत तौर तरीकों से खेती करने पर एक हेक्टेयर से प्याज की 250 से 300 क्विटंल तक उपज आसानी से मिल जाती है। और हरी प्याज की 80 से 90 क्विटंल/हेक्टेयर तक मिल जाती है।
प्याज की विपणन हेतु तैयारी:-
प्याज की खुदाई करने के बाद उनके ऊपर के डंठल काट दिए जाते हैं और गांठों को फर्श पर छायादार स्थान में फैला दिया जाता है। क्षतिग्रस्त, कटी-फटी और मोटी गर्दन वाली गांठों को अलग कर लिया जाता है और उन्हें तुरंत बाजार भेज दिया जाता है छांटने के बाद बढ़िया किस्म की गांठों को हवादार और सूखे स्थान पर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सुखाते समय प्याज को सीधी धूप तथा वर्षा से बचाना जरुरी होता है सूखे मौसम में 15 से 20 दिन के भीतर प्याज की गांठें सूख जाती हैं और उनका छिलका कड़ा हो जाता है इसके बाद इनको पतले हवादार बोरों में भरकर भेज दिया जाता है।
प्याज का भण्डारण:-
प्याज को भंडारित करने से पहले अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए अच्छे हवादार कमरों में, जिनका फर्श सीलन-रहित हो, प्याज की गांठों को भंडारित किया जा सकता है। इन्हें फर्श पर 8 से 10 सेन्टीमीटर की परत बनाकर फैला देनी चाहिए। भण्डारण में प्याज का ढेर बनाकर नहीं रखना चाहिए। कमरे में भंडारित प्याज को बीच बीच में उलटते रहना चाहिए और सड़ी तथा अंकुरित गांठों को निकाल देना चाहिए। कई प्रयोगों से पता चला कि कि 0 डिग्री सेल्सियस तापमान और 70 से 75 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता पर प्याज की गांठों को 4 से 5 महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है। साधारण तापमान पर हवादार स्थान में प्याज को खुले बक्सों में या रस्सियों के बनाए हुए जालीदार छीकों में लटकाकर या नमी रहित फर्श पर 2 से 3 पतली तहोंं में बिछाकर काफी समय तक भंडारित कर सकते हैं।
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