सरसों की खेती। sarso ki kheti। sarson ki kheti sarson। राई की खेती। rai ki kheti।

सरसों की खेती या sarso ki kheti या sarson ki kheti sarson और राई की खेती या rai ki kheti के बारे में आज हम बात करेंगे। दोस्तों/किसान भाईयों तो आइए शुरू करते हैं- sarso ki kheti के बारे में जानकारी।

सरसों और राई फसलों का रबी में उगाई जाने वाली तिलहनी फसलों में विशेष स्थान है, क्योंकि यह फसल बहुत से लोगों के लिए खाद्य तेल का मुख्य स्रोत है। तिलहन फसलों में मूंगफली के बाद इन्हीं का मुख्य स्थान है। सरसों के हरे पौधों की पत्तियों का साग बनाकर खाया जाता है हरे पौधे पशुओं को हरे चारे के रुप में भी खिलाए जाते हैं अतः इन फसलों के हरे पौधे से लेकर सूखे तने, बीज, आदि का मानव के उपयोगाें के लिए मुख्य स्थान है।

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सरसों की खेती व राई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:-

सरसों और राई की फसलों के लिए ठंडी तथा शुष्क जलवायु की जरूरत होती है। इनकी वानस्पतिक बढ़ोतरी के लिए पर्याप्त मृदा-आर्द्रता की जरूरत होती है। फसल के पकते समय शुष्क मौसम जरुरी है। लेकिन पाले से फसल की उपज को बहुत अधिक हानि पहुंचती है इससे फलियों के अंदर ही बीज मर जाते हैं।

सरसों की खेती व राई की खेती के लिए उपयुक्त भूमि:-

सरसों और राई की फसलों को बलुई दोमट भूमि से लेकर मटियार दोमट भूमि में उगाया जा सकता है। परंतु हल्की दोमट भूमि इसके लिए अच्छी रहती है, जिसमें कि अच्छा जलनिकास हो! अगर मिट्टी का पी•एच• मान 6.5 से 7.5 के बीच रहे तो अच्छी उपज मिलती है।

3 in 1 मशीन (pH मान मापने के लिए उपयुक्त)

सरसों की खेती व राई की खेती के लिए भूमि की तैयारी:-

सरसों और राई की फसलों के बीज बहुत छोटे आकार के होते हैं इसलिए खेत की अच्छी तैयारी होना जरुरी होता है पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो से तीन जुताइयां देशी हल से करके पाटा लगाकर खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए। अगर खेत में नमी की कमी है तो पलेवा करके खेत तैयार करना चाहिए।

सरसों की खेती व राई की उन्नत प्रजातियां:-

राई/लाहा की उन्नत प्रजातियां:-

किरण, पूसा अग्रणी, करिश्मा, उर्वशी, वरुणा, वरदान, वैभव, शेखर, रोहिणी, क्रांति, कृष्णा, पूसा बोल्ड सौरभ, नरेंद्र राई, बसंती, आदि।

भूरी सरसों की उन्नत प्रजातियां:-

पूसा कल्याणी, बीएस-2, बीएस-70, बीएसएच-1, डी-52, सुफला, आदि।

पीली सरसों की उन्नत प्रजातियां:-

टा-151, के-88, टा-42, रोगिनी,बी-9, टी-51, एनडीवाईएस-5, एनडीवाईएस-17 आदि।

तोरिया या लाही की उन्नत प्रजातियां:-

टा-9, टा-36, पीटी-30, पीटी-303, भवानी, पूसा बहार, पीटी-507, आदि।

सरसों की खेती व राई की खेती के लिए बीजों की बुवाई:-

सरसों और राई के बीजों की बुवाई आगे दिए गए कुछ चरणों में पूरी होती है तो आइए जानते हैं।

बुवाई का समय:-

सरसों और राई की उपज पर बुवाई के समय का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। बुवाई के उचित समय से पहले और बाद में, दोनों ही दशाओं में उपज घटती है। सरसों तथा राई को बोने का सही समय 1अक्टूबर से 15अक्टूबर है। और तोरिया को बोने का सही समय 1सितंबर से 15सितंबर है।

बीज की मात्रा:-

एक हेक्टेयर की शुद्ध फसल को बोने के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है और जब इन फसलों को अन्य फसलों के साथ मिलवां रूप में बोया जाता है तो 1.5 से 2.0 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त रहता है तथा तोरिया की बीजदर 4किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

बीज का उपचार:-

बीज को बोने से पहले 2.5 ग्राम बाविस्टिन या ब्रासीकाल प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेने पर फसल में बीज जनित बीमारियों का प्रकोप नहीं हो पाता है.

बुवाई की विधि:-

सरसों और राई की बुवाई सीडड्रिल से अथवा देशी हल के पीछे उथले कूंड़ों में की जानी चाहिए।

बोने की दूरी:-

सरसों और राई की फसलों को हमेशा ही पंक्तियों में बोना चाहिए। सरसों तथा राई की बुवाई करने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेन्टीमीटर रखनी चाहिए। बीज को 2.5-3.0 सेन्टीमीटर से अधिक गहरा नहीं बोना चाहिए। फसल बोने के 15 दिन बाद पौधों की छंटाई करके पंक्ति में पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेन्टीमीटर कर देनी चाहिए। तोरिया 30 सेन्टीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोनी चाहिए।

सरसों की खेती व राई की खेती के लिए खाद और उर्वरक:-

सरसों एवम् राई की फसलों में खाद तथा उर्वरक दोनों के ही काफी सकारात्मक परिणाम मिले हैं। यदि गोबर की सड़ी या कम्पोस्ट उपलब्ध में हो तो 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय ही डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। फसलों में नाइट्रोजन वाले उर्वरकों के प्रयोग से आशातीत बढ़ोतरी होती है। परिक्षणों के आधार पर इन फसलों में 80 से 100 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देने की संस्तुति की गई है। फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर तय करनी चाहिए। यदि मिट्टी का परीक्षण न हो सके तो 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा पोटाश और फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही देनी चाहिए और बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा पहली सिंचाई पर दे देनी चाहिए। असिंचित दशाओं में दिए गए उर्वरकों की केवल आधी मात्रा ही बुवाई के समय देनी चाहिए।
तोरिया के लिए सिंचित दशा में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन व 30 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिए असिंचित दशाओं में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन व 20 किलोग्राम फॉस्फोरस देना चाहिए।

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सरसों की खेती व राई की खेती के लिए सिंचाई:-

सिंचित दशा में सरसों वर्ग की फसल में प्रथम सिंचाई फूल निकलने की अवस्था पर देनी चाहिए इस सिंचाई का सबसे अधिक महत्व है यह बुवाई के 40 से 55 दिन बाद की जाती है और दूसरी सिंचाई फलियों में दाना भरते समय दे सकते हैं।
तोरिया में पहली सिंचाई फूल निकलने की अवस्था पर (लगभग बोने के 25 से 30 दिन बाद) करें। प्रथम सिंचाई इस अवस्था पर करने से उपज में 25 प्रतिशत की वृद्धि होती है दूसरी सिंचाई उपलब्ध होने पर दाना भरने की अवस्था पर करें।

सरसों की खेती व राई की फसल में निराई-गुड़ाई:-

बुवाई के 15 से 20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करनी चाहिए और उसी समय पंक्ति में उगे हुए घने पौधों की छंटाई करनी भी जरुरी है। पंक्ति में उगे हुए घने पौधों को निकालकर पौधों की आपस की दूरी 15 से 20 सेन्टीमीटर कर देनी चाहिए। पहली निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई से पहले और दूसरी निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई के 10 से 15 दिन बाद करनी चाहिए।

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सरसों की फसल व राई की फसल में खरपतवार नियंत्रण:-

सरसों और राई की फसलों की बढ़वार की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार नियंत्रण करना जरुरी है। निराई-गुड़ाई से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करके भी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। इसके लिए फसल बोने के तुरंत बाद आइसोप्रोट्यूरॉन की 1किलोग्राम(सक्रिय तत्व) मात्रा को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए। अथवा पेंडीमेथलिन 3.3 लीटर/हेक्टेयर का छिड़काव भी कर सकते हैं।

सरसों की फसल व राई की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग तथा उनकी रोकथाम:-

सरसों और राई की फसलों में लगने वाले प्रमुख रोग, उनके लक्षण और रोकथाम के उपाय निम्नलिखित हैं-

पौध आर्द्रपतन:-

इस रोग के कारण बीज भ्रूण भूमि के बाहर अंकुरित होने से पहले ही मर जाता है कुछ पौधों के उग आने के बाद यह रोग लगता है। इनमें प्रांकुर तो बीज से बाहर निकल आता है लेकिन बाद में रोग के कारण सड़ जाता है।

रोकथाम:-

बीज को दो ग्राम कैप्टान या कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद बोना चाहिए।
कटाई के बाद फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।

सफेद गेरुई:-

यह रोग भी एक फफूंद के कारण होता है। इस रोग के कारण पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले जैसे पड़ जाते हैं इसके बाद में पुष्पविन्यास विकृत हो जाता है।

रोकथाम:-

सबसे पहले स्वस्थ्य बीजों का प्रयोग करें।
खेत से खरपतवार आदि निकालकर साफ रखें क्योंकि शुरू में यह रोग खरपतवारों पर आता है।
फसल पर 0.2 प्रतिशत डाइफोलिटान या इंडोफिल एम-45 का छिड़काव करें।

सरसों की फसल व राई की फसल में लगने वाले कीड़े और उनका नियंत्रण:-

सरसों और राई की फसलों में बहुत से कीड़े हानि पहुंचाते हैं लेकिन यहां पर कुछ महत्त्वपूर्ण कीड़ों के बारे में जानकारी दी गई है।

सरसों की आरा मक्खी:-

इस मक्खी की गिन्डार भूरे-मटमैले रंग की होती है जो पत्तियों में छेद करके खाती है। जिससे पत्तियां बिल्कुल छलनी हो जाती हैं। पौधों की छोटी अवस्था में इस कीड़े का प्रकोप अधिक होता है और जब पौधे बड़े हो जाते हैं तो इनका प्रकोप स्वतः ही कम हो जाता है।

रोकथाम:-

सर्दी बढ़ने पर यह कीड़े मर जाते हैं और इनकी रोकथाम के लिए 1.3% लिंडेन धूल का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए।

रोमिल सूंडी या कमला कीट:-

इस कीड़े की सूंड़ियां फसल की प्रारंभिक अवस्था में आक्रमण करती हैं ये पत्तियों को खाती हैं।

रोकथाम:-

इस कीड़े की रोकथाम के लिए 1.25 लीटर इंडोसल्फान 35 ईसी• या साइपरमेथ्रिन को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

सरसों की फसल राई की फसल की कटाई-मंडाई:-

फसल को पूरी तरह खेत में सूखने नहीं देना चाहिए। कटाई के लिए ठीक अवस्था तब होती है जब पौधे तथा फलियां पीली पड़ जाती हैं तथा बीज अपने प्राकृतिक रंग के होते हैं। कटाई दरांती आदि से कर लेनी चाहिए कटाई के बाद पौधों को छोटे-छोटे गठ्ठों में बांधकर खलिहान में लगभग एक सप्ताह तक सुखाना चाहिए। इसके बाद डंडे से पीटकर या थ्रेसर/कटर की सहायता से मंडाई कर लेनी चाहिए।

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सरसों की फसल व राई की फसल की उपज:-

उन्नत विधियों से सरसों और राई की खेती करने पर लगभग 25 से 30 क्विटंल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है। तोरिया की उपज 20 से 25 क्विटंल प्रति हेक्टेयर मिल जाती है।

सरसों की फसल में तेल प्रतिशत:-

क्र•सरसों वर्गतेल की प्रतिशतता
1.पीली व भूरी सरसों35-48%
2.राई33-42%
3.तोरिया33-46%
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सरसों की खेती व राई की खेती का बीजोत्पादन:-

सरसों और राई का शुद्ध प्रमाणित बीज उत्पादन करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर खेती करनी चाहिए।

  • बीज उत्पादन के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें जिसमें पिछले साल सरसों या राई की फसल न उगाई गई हो।
  • बीज उत्पादन के लिए किसी विश्वसनीय संस्था से शुद्ध आधार बीज प्राप्त करने के पश्चात ही फसल लगानी चाहिए।
  • सरसों और राई की फसल में बीज उत्पादन वाले खेत से अन्य सरसों और राई का खेत कम से कम 200 की दूरी पर होना चाहिए।
  • फसलों को लाइनों में शुद्ध फसल के रुप में लगाना चाहिए। किसी भी अन्य फसल के साथ मिलवां फसल के रुप में न उगाया जाए।
  • फसल की अच्छी तरह से देखरेख की जानी चाहिए। जब पौधे लगभग 15 से 20 सेन्टीमीटर ऊंचाई के हो जाएं तो फसल में निराई-गुड़ाई करके सभी खरपतवारों को निकाल देना चाहिए। फसल में किसी भी रोग अथवा कीड़े के आक्रमण पर तुरंत ही उपचार करना चाहिए।
  • फसल का अच्छी तरह से निरीक्षण करके फूल आने से पहले सभी अवांछनीय पौधों तथा सत्यानाशी खरपतवार के पौधों को जरुर निकाल देना चाहिए। दूसरी बार रोगिंग तब करें जब पौधों में फलियां आ जाएं फलियों के आकार, रंग आदि के अंतर को देखकर भी सभी अवांछनीय पौधों को निकाल देना चाहिए।
  • जब पौधों में लगभग 90% फलियां पीले रंग की पड़ जाएं तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। दो से तीन दिन खलिहान में रहने के बाद मंडाई करके दानों को अलग निकाल लेना चाहिए। दानों को साफ करके तेज धूप में इतना सुखाएं कि दानों में लगभग 08 प्रतिशत नमी रह जाए। फिर बीज का सही ढंग से भण्डारण करें।

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सरसों की खेती व राई की खेती से सम्बंधित कुछ प्रश्नोत्तर:-

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2 thoughts on “सरसों की खेती। sarso ki kheti। sarson ki kheti sarson। राई की खेती। rai ki kheti।”

  1. बहुत अछि जानकारी इसमे दी जा रही है किसान भाइयों के लिए धनियवाद

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