मटर की खेती। matar ki kheti। पूरी जानकारी।

मटर की खेती। matar ki kheti। के बारे में आज हम आपको पूरी जानकारी देंगे तो इसलिए आप यह पूरा लेख पढ़ें ताकि आपको मटर की खेती संबन्धित सभी बातें समझ में आ सकें।

मटर सर्दी के मौसम की सब्जी है जो कि बहुत हद तक पाले को सहन कर सकती है मटर प्रकृति में गर्म तथा रूक्ष है और मटर में प्रोटीन की अधिकता पाई जाती है।

मटर की खेती के लिए भूमि:-

मटर की खेती के लिए दोमट और हल्की भूमि बहुत अच्छी रहती है। लेकिन बलुई दोमट से लेकर मृत्तिका भूमि तक में भी मटर की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

मटर की खेती के लिए भूमि की तैयारी:-

मटर की फसल लेने के लिए भूमि को एक बार किसी भारी मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके और 2 से 3 बार देशी हल से जुताइयां करके खेत को तैयार कर लेना चाहिए। देशी हल से जुताइयों के बाद खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत में पटेला भी घुमाना चाहिए और अगर देशी हल उपलब्ध न हो तो कल्टिवेटर का भी प्रयोग किया जा सकता है।

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मटर की खेती के लिए उन्नत किस्में:-

मटर की उत्तम तरह से करने के लिए बहुत सी मटर की किस्में उपलब्ध हैं लेकिन यहां पर कुछ ही किस्मों के नाम दिए गए हैं!

विवेक-6, विवेक मटर-8, आर्केल, पंत सब्जी मटर-3, जवाहर मटर-1, जवाहर मटर-2, मिटीओर, अर्ली बैजर, असौजी, बोनविले, आजाद मटर-1, पंत उपहार, आदि।

मटर की बुवाई का समय:-

मैदानी इलाकों में मटर की खेती के लिए बुवाई का उचित समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है। लेकिन 2500 मीटर से नीचे पहाड़ी इलाकों में विभिन्न किस्में नवम्बर या बसंत ऋतु में बोनी चाहिए और अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में जुलाई से अगस्त या मार्च के महीनों में बुवाई की जा सकती है।

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मटर की खेती के लिए बीज की मात्रा:-

एक हेक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 80 से 100 किलोग्राम बीज की जरुरत पड़ती है।

मटर के बीज का उपचार:-

मटर के बीज का उपचार कैप्टान अथवा थायराम से करना चाहिए। 100 किलोग्राम बीज में 250 ग्राम रसायन मिलाना चाहिए।

मटर को बोने का तरीका:-

मटर की बुवाई सीडड्रिल से अथवा देशी हल के पीछे-पीछे कतारों में करते हैं कतार से कतार की दूरी 20 से 30 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 4 से 5 सेन्टीमीटर रखें।

मटर की खेती के लिए सिंचाई:-

मटर की खेती करने में वैसे तो ज्यादा सिंचाइयों की जरुरत नहीं पड़ती है लेकिन अच्छे से अच्छे जमाव के लिए बुवाई के समय जमीन में पर्याप्त मात्रा में नमी होना बहुत ही जरुरी होता है एक सिंचाई फूल आने के समय जरुर करनी चाहिए, लेकिन सिंचाई हल्की करनी चाहिए।

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मटर की खेती के लिए खाद और उर्वरक:-

सबसे पहले खाद की मात्रा जानने के लिए मिट्टी की जांच जरुर करा लेनी चाहिए लेकिन यदि जांच की सुविधा उपलब्ध न हो तो औसत उर्वरा शक्ति वाली भूमि में मटर के लिए 150 किलोग्राम डीएपी तथा 50 से 60 किलोग्राम एमओपी का मिश्रण प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें।

मटर की खेती में निकाई-गुड़ाई:-

अधिकतर मटर के खेती करने में निकाई-गुड़ाई की जरुरत नहीं होती है क्योंकि इसकी फसल जल्द ही बढ़कर जमीन को ढक लेती है। फिर भी बुवाई के समय 3 से 4 सप्ताह के बाद निकाई करना लाभदायक होता है।

मटर की खेती में खरपतवार और उनका नियंत्रण:-

मटर की खेती में खरपतवार बहुत ही कम होते हैं और जो होते भी हैं वो निकाई-गुड़ाई करने से खत्म हो जाते हैं।

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मटर की खेती में लगने वाले रोग तथा उनकी रोकथाम:-

मटर की खेती में कई रोग लगते हैं लेकिन यहां पर कुछ महत्त्वपूर्ण रोगों के बारे में जानकारी दी गई है।

बीज और जड़ सड़न:-

इस रोग के कारण या तो बीज सड़ जाते हैं या उगने के बाद छोटे-छोटे पौधे मर जाते हैं। अधिक नमी और भारी भूमि में यह रोग बहुत ही ज्यादा फैलता है।

रोकथाम:-

इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को बोने से पहले किसी फफूंदीनाशक दवा से उपचारित कर लेना चाहिए।
खेत में जलनिकास का उचित प्रबंध होना चाहिए।

चर्णिल आसिता रोग:-

इस रोग के लक्षण पहले पत्तियों पर और उसके बाद पौधे के अन्य हरे भागों पर दिखाई पड़ते हैं। इस रोग में पत्तियों के ऊपर सफेद चूर्ण सी जम जाती है और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं डंठल और पत्तियों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।

रोकथाम:-

चर्णिल आसिता रोग की रोकथाम के लिए 3 किलोग्राम घुलनशील गंधक जैसे इलोसाल या सल्फैक्स को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें कैराथेन (0.06%) का छिड़काव भी लाभकारी होता है।

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मटर की खेती में लगने वाले कीड़े और उनकी रोकथाम:-

मटर की खेती में लगने वाले प्रमुख कीड़ों के बारे में जानकारी आगे दी गई है।

तना छेदक:-

इस कीड़े की मादा पौधों के कोमल तनों और शाखाओं में छेद करके अंडे देती है अंडे से गिंडार निकलकर तने को अन्दर से खाते हुए नीचे की ओर चली जाती है सबसे ज्यादा नुकसान पौधों की शुरूआत की अवस्था में होता है जिसके कारण पौधे सूखकर नष्ट हो जाते हैं लेकिन जब फसल बड़ी हो जाती है तो यह कीड़ा फसल को हानि नहीं पहुंचा पाता है।

रोकथाम:-

इस कीड़े की रोकथाम के लिए फसल बोने के समय 30 किलोग्राम फ्यूराडान या 10 किलोग्राम थिमेट ग्रेनूल्य प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए। जब फसल लगभग 10 से 15 सेन्टीमीटर ऊंचाई की हो जाए तो 0.15 प्रतिशत इंडोसल्फान 35 ईसी• के घोल का छिड़काव कर देना चाहिए।

फली छेदक:-

इस कीड़े की सुंडिया हरे रंग की होती हैं जो फलियों में छेद करके अंदर घुस जाती हैं और दाने खा जाती हैं और फलियों को पूरी तरह से खराब कर देती हैं।

रोकथाम:-

फली छेदक कीड़े की रोकथाम के लिए 2 किलोग्राम सेविन जो कि 50 प्रतिशत घुलनशील हो, अथवा 1.5 लीटर सुमिसीडीन 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

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मटर की फसल की कटाई:-

अलग-अलग किस्मों के अनुसार हरी फलियां अलग-अलग समय पर तैयार होती हैं फलियां 10 से 12 दिन के अंतर पर 3 से 4 बार में तोड़ना चाहिए दाने के लिए बोई गई किस्में मार्च तक पककर तैयार हो जाती हैं पकी फसल की कटाई जल्द ही कर लेनी चाहिए नहीं तो खेत में दाने गिर जाने की संभावना रहती है।

मटर की खेती से पैदावार:-

उन्नत तौर-तरीकों से यदि मटर की खेती की जाए तो 100 से 120 क्विंटल हरी फलियों की उपज प्राप्त हो सकती है अगेती फसल से 50 से 60 क्विंटल फलियां! दाने की औसत उपज 35 से 50 क्विंटल और भूसे की 50 से 60 क्विटंल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है।

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