प्याज के रोग और कीट। pyaj ke rog aur keet। Krishakjan

दोस्तों किसान भाईयों नमस्कार इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं कि अगर आपने प्याज की खेती की है तो आपके लिए क्या समस्या उत्पन्न हो सकती है और कौन सी समस्या उत्पन हो रही है तो आइए जानते हैं प्याज में होने वाली समस्याएं और उन समस्यायों का निवारण कैसे करें?, यह भी जानते हैं।

किसान भाईयों प्याज की खेती में रोग एवं कीट नियंत्रण जरूरी है, क्योंकि भारत में भिन्न भिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती में प्याज का बड़ा महत्व है। जो एक नकदी फसल के रूप में जानी जाती है। प्याज एक बहुगुणी फसल है। प्याज की उत्पादन क्षमता पर कीट एवं रोग अत्यधिक प्रभाव डालते हैं। जिसमें फसलों को विभिन्न प्रकार से क्षति या कह सकते हैं कि नुकसान पहुंचता है।

प्याज में काली फफूंदी रोग (pyaj me kali fafundi rog):-

किसान भाईयों जैसे कि नाम से पता चल रहा है कि, यह एक प्रकार की फफूंदी होती है। यह एक प्रकार का आम कवक होता है यह स्टार्च वाली लगभग सभी सब्जियों में पाई जाता है। इस कवक जनित रोग के प्रभाव के कारण बीज बिना अंकुरित हुए सड़ जाते हैं। यदि अंकुरण होता भी है। तो मूल संधि वाले हिस्से में पानी से भरे हुए घाव दिखाई देते हैं।

निवारण के उपाय:-

इस रोग से बचाव हेतु अच्छे से अच्छे जलनिकास वाला खेत चुनना चाहिए। और गर्म मौसम में यह ध्यान रखना चाहिए कि आर्द्रता 80 प्रतिशत से कम ही रहे। इस रोग से बचाव हेतु आप ट्रायडाइमफॉन 25.0 WP का प्रयोग भी कर सकते हैं। किसान भाईयों सबसे पहले यदि आपके पास उपलब्ध हो सके तो प्रतिरोधक या सहनशील प्रजातियों को चुनना चाहिए। और पौधे से पौधे की दूरी पर्याप्त मात्रा में रखनी चाहिए। और लार्वा या अंडो वाली पत्तियों अथवा पौधों को हांथ से ही निकाल फेंकना चाहिए। तथा आप मेथोमाइल अथवा इंडोक्साकार्ब पर आधारित कुछ उत्पादों का भी उपयोग कर सकते हैं।

काला धब्बा रोग (kala dhabba rog):-

दोस्तों महाराष्ट्र राज्य में खरीफ ऋतु के मौसम में इस बीमारी का प्रकोप बहुत ज्यादा होता है। यह रोग कोलेटोट्राइकम ग्लेओस्पोराइडम नामक कवक से होता है। रोग के प्रारम्भ में पत्तियों के बाहरी भाग पर जमीन से लगने वाले भाग में राख के रंग के चकत्ते बन जाते हैं। जो बाद में बढ़ जाते हैं और पूरी पत्तियों पर काले रंग के उभार से दिखने लगते हैं। ये उभार गोलाकर होते हैं। इससे प्रभावित पत्तियाँ मुरझाकर मुड़ जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय:-

रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को कारबेंडाजिम या क्लोरोथलोनिल के 0.2 धोल में डुबाना चाहिए।

पौधशला के लिए उठी हुई क्यारियाँ बना लेनी चाहिए।

पौधशाला में बीज पतला बोना चाहिए।

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थ्रिप्स कीट (thrips kit):-

किसान भाईयों यह एक छोटे आकार का कीड़ा होता है, जिसके शिशु और वयस्क दोनों ही पत्तियों से रस चूसते हैं। पत्तियों पर सफेद धब्बे बनते हैं, जो बाद की अवस्था में पीले और सफेद हो जाते हैं। यह कीड़ा शुरू की अवस्था में पीले रंग का होता है जो आगे चलकर काले और भूरे रंग का हो जाता है।

नियंत्रण के उपाय:-

किसान भाईयों प्याज के बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस पाउडर से (2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) शोधित करके ही बोना चाहिए।

दोस्तों मेन खेत में रोपाई के बाद में डाईमेथोएट 30 ई सी की 1 मिलीलीटर मात्रा या फॉस्फामिडॉन 85 ई सी 0.6 प्रतिशत की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर में मिलाकर 2 से 3 बार करना चाहिए। यह छिड़काव 15-15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।

भूरा विगलन रोग (bhura viglan rog):-

दोस्तों यह रोग स्यूडोमोनास ऐरूजिनोसा नामक जीवाणु से होता है। यह रोग आमतौर पर प्याज भण्डारण के समय में लगता है। इस बीमारी का प्रकोप प्याज के कंदों के गर्दन वाले भाग से शुरू हो जाता है, जो बाद में सड़कर गंध करने लगता है।

नियंत्रण के उपाय:-

प्याज की खुदाई करने के उपरांत इसे अच्छी प्रकार से सुखा लेना चाहिए तथा भण्डारण ऐसी जगह करना चाहिए जहां नमी कम से कम हो और हवादार स्थान हो।

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बैंगनी धब्बा या पर्पल ब्लाच रोग (baigani dhabba या purple bloch rog):-

दोस्तों आमतौर पर यह बीमारी प्याज उगाने वाले सभी क्षेत्रों में पायी जाती है। यह रोग फंफूद (अल्टरनेरिया पोरी) से होता हैं। यह रोग प्याज की पत्तियों, तनों और डंठलों पर लगता हैं। इस रोग से ग्रस्त भाग पर सफेद भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। जिनका बीच का भाग बाद में बैंगनी रंग का हो जाता है। इस रोग से भंडारण के समय में प्याज सड़ने लगता है; जिससे भारी क्षति होती है।

नियंत्रण के उपाय:-

किसान भाईयों प्याज में इस रोग के नियंत्रण हेतु प्रतिरोधी प्रजाति के बीज का प्रयोग करना चाहिए।

बुवाई से पूर्व प्याज के बीज को थीरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम से शोधित कर लेना चाहिए।

इस रोग का प्रकोप मेन खेत में होने पर क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत की 2 ग्राम मात्रा का डाइथेन एम- 45 की 2.5 गाम मात्रा प्रति लीटर पानी के साथ 0.01 सैंडोविट या कोई चिपचिपा पदार्थ अवश्य मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर 3 से 4 बार छिड़काव कर लेना चाहिए।

जीवाणु मृदु विगलन (jivanu mradu viglan):-

दोस्तों यह रोग इर्विनिया कैरोटोवोरा नामक जीवाणु से होता है। इस रोग के संक्रमण से पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं। तथा ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं। अधिक संक्रमण होने पर पौध 01 सप्ताह में सूखने है। इस रोग से प्याज को बीच फसल में अधिक नुकसान पहुंचता है।

नियंत्रण के उपाय:-

दोस्तों स्वस्थ नर्सरी की रोपाई करनी चाहिए।

प्याज में रोग के लक्षण दिखने पर एन्टीबायोटिक स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 200 पीपीएम पानी के घोल का छिडकाव भी करना चाहिए।

जैव नियंत्रक जीवाणु स्यूडोमोनास फ्लूओरिसेन्स की 5.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए।

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