Lahsun ki kheti

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लहसुन की खेती मसाले के लिए की जाती है अगर बात करें garlic cultivation in india की तो लगभग सभी इलाकों में इसकी खेती की जाती है लेकिन मुख्य रूप से लहसुन की खेती तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा गुजरात में की जाती है।

लहसुन में पौष्टिक तत्व भी पाए जाते हैं 100 ग्राम लहसुन में 62 ग्राम पानी, 29 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 9.3 ग्राम प्रोटीन, 0.1 ग्राम वसा, 1.0 ग्राम लवण, 310 मिलीग्राम फास्फोरस, 30 मिलीग्राम कैल्शियम, 13 मिलीग्राम लोहा पाया जाता है।

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लहसुन की खेती के लिए जलवायु (lahsun ki kheti ke liye jalvayu):-

लहसुन की खेती सर्दियों के मौसम की खेती है। लहसुन (garlic) पाले को काफी हद तक सहन कर लेती है। पौधों की वानस्पतिक वृद्धि एवं गांठों के निर्माण के लिये मध्यम तापमान और कम समय के लिए प्रकाश की जरूरत होती है। पत्तियों की बढ़वार गाँठ बनने के साथ ही रुक जाती है। अतः लहसुन की अधिक उपज और पर्याप्त वानस्पतिक वृद्धि के लिये इसे जल्दी ही (सितम्बर-अक्टूबर में) बोना चाहिये ताकि इसे ठण्डा तापमान और कम प्रकाश अधिक विकास के लिये मिल सके। 30° से० से अधिक तापमान होने पर गाँठो का निर्माण बन्द हो जाता है। लहसुन के समुचित विकास व उपज के लिये 13-24° सेल्सियस तापमान और 65-70 प्रतिशत नमी की जरूरत होती है। लहसुन को समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊँचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।

लहसुन की खेती के लिए भूमि और उसकी तैयारी (lahsun ki kheti ke liye bhumi aur uski taiyari):-

साधारण तौर पर लहसुन की खेती सभी प्रकार की उपजाऊ भूमियों में की जा सकती है लेकिन लहसुन की अधिक उपज के लिये अच्छे जल-निकास वाली बलुई दोमट या दोमट भूमि, जिसमें जीवाँश की भी पर्याप्त मात्रा हो, सबसे अच्छी रहती है। भारी मिट्टी lahsun ki kheti के लिये ठीक नहीं रहती क्योंकि इसमें लहसुन की गाँठे ठीक से बढ़ नहीं पाती हैं और उनका आकार भी बिगड़ जाता है, साथ ही खुदाई के समय भी गाँठों में खरोंच लगने तथा टूटने का भय रहता है। भूमि क्षारीय या अम्लीय नहीं होनी चाहिये। भूमि का पी० एच० मान 6 से 7.5 तक होना चाहिये।

भूमि की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 3-4 बार देशी हल से करनी चाहिये। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाते रहना चाहिये ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाये। मिट्टी अच्छी प्रकार से भुरभुरी होनी चाहिये ताकि गाँठों का समुचित विकास हो सके।

लहसुन की खेती के लिए उन्नत किस्में (lahsun ki kheti ke liye unnat kisme):-

भारत में लहसुन की बहुत कम उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। देश के जिन भागों में लहसुन की खेती होती है; वहाँ पर स्थानीय अच्छी किस्में उपलब्ध हैं। लहसुन दो प्रकार का होता है-एक सफेद और दूसरा लाल। खाने के लिये सफदे लहसुन का ही प्रयोग किया जाता है। लाल किस्म का लहसुन अधिक कड़वा (fungent) होता है तथा इसका प्रयोग दवा के रूप में किया जाता है। सफेद लहसुन में भी कुछ किस्मों की गाँठें छोटे आकार की और कुछ किस्मों की गाँठें बड़े आकार की होती हैं। इनको दो वर्गों में बांटा गया है

लहसुन की छोटी गाँठ वाली किस्में:-

टाइप 56-4, तहीती, जी० 1, जी० 4, जी०-50, 282, लोहित, जी० 41, गोदावरी सलेक्शन-1, आदि।

लहसुन की बड़ी गाँठ वाली किस्में:-

सोलन, फवारी, रजाली-गद्दी, G-323, जीवन, पूना मदुराई मैदानी, आदि।

लहसुन की खेती में बीज बुवाई (lahsun ki kheti me beej buvai):-

लहसुन की बीज की बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा:-

उत्तरी भारत में मैदानी भागों में लहसुन की बुवाई सितम्बर-अक्टूबर में की जाती है। सितम्बर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर के पहले सप्ताह के बीच का समय बोआई के लिये सबसे उपयुक्त माना गया है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बोआई मार्च-अप्रैल में की जाती है।

बुवाई के लिये स्वस्थ और बड़े आकार की गाँठों का चुनाव करना चाहिये। एक हैक्टेयर में बुवाई करने के लिये छोटी गाँठों वाली किस्मों का 400 से 500 किलोग्राम और बड़ी गाँठ वाली किस्मों का 600 से 700 किलोग्राम बीज (पुत्तियों) लगता हैं। बोने से पहले पुत्तियों (cloves) को गाँठों से अलग कर लेते हैं। गाँठों से पुत्तियों को अलग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पुत्तियों के ऊपर की पतली सफेद पर्त को कोई हानि न पहुँचे। स्वस्थ तथा बड़ी-बड़ी पुत्तियों की पैदावार अच्छी मिलती है। अतः बोने के काम में लायी जाने वाली पुत्तिया बड़े आकार की तथा कम से कम एक ग्राम वजन की होनी चाहिये। बोने के काम में लायी जाने वाली पुत्तियों रोग रहित, सुडौल, चमकीली और चिकनी होनी चाहियें।

लहसुन की खेती में बुवाई की विधि तथा बोने की दूरी:-

लहसुन की बुवाई निम्नलिखित दो तरीकों से करते हैं।

हाथ द्वारा:-

हांथ के द्वारा बुवाई की विधि से तैयार खेत में पहले क्यारियां बना ली जाती हैं। 15 सेन्टीमीटर की दूरी पर कतारें बना ली जाती हैं और फिर हाथ से इन कतारों में 7-8 सेमी० की दूरी पर 4-5 सेमी गहराई पर पुत्तियों को गाड़ते चले जाते हैं।

गाड़तें समय पुत्तियों का जड़ वाला भाग नीचे की ओर तथा नुकीला सिरा ऊपर की ओर रखते हैं। इसके बाद पुत्तियों को मिट्टी से ढक देते हैं। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना जरूरी होता है। यह विधि केवल छोटे क्षेत्र में बोआई करने के लिये ही अच्छी मानी जाती है क्योंकि इसमें समय और मजदूरी अधिक लगती है।

हल के पीछे कूड में बोना:-

इस विधि में देशी हल की सहायता से 15 सेन्टीमीटर की दूरी पर कूड खोल लेते हैं अथवा प्लेनेट जूनियर की सहायता से 15 सेमी० की दूरी पर नालियां सी बना लेते हैं। इन कूड़ों या नालियों में हाथ से लगभग 7-8 सेमी० की दूरी पर पुत्तियों को गिराते जाते हैं। बोआई समाप्त करने के बाद पाटा लगाकर कूड़ों को मिट्टी से ढक देते हैं। अधिक क्षेत्रफल में बोआई करने के लिये यह उत्तम विधि है।

लहसुन की खेती में खाद तथा उर्वरक (lahsun ki kheti me khad aur urvarak):-

लहसुन की अच्छी पैदावार लेने के लिये खाद और उर्वरक दोनों की ही जरूरी होते हैं। खेत की तैयारी के समय 200 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिये। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के अनुसार करना चाहिये। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के अनुसार लहसुन के लिये 100 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस तथा 100 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा को बोआई के एक माह बाद टापड्रेसिंग के रूप में कतारों के बीच में डालकर दे दें।

लहसुन की खेती में सिंचाई (lahsun ki kheti me sinchai):-

लहसुन की खेती में सिंचाई का बहुत महत्व है। बिना सिंचाई के इससे अधिक उपज लेना सम्भव नहीं है। जब तक बोयी गयी पुत्तियों से अंकुर न निकलें तब तक भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी को बनाये रखना अति आवश्यक है। यदि बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी न हो तो बुवाई के बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिये। इसके बाद सर्दियों में 10-15 दिन के अन्तर से तथा गर्मी आने पर 5-7 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहना चाहिये। लहसुन की फसल में गाँठों के निर्माण के समय सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। इस समय सिंचाई में देर करने या असावधानी बरतने से गाँठे फटने लगती है जिससे उपज कम हो जाती है। जब फसल तैयार हो जाये अर्थात् जब पौधों की ऊपरी पत्तियाँ सुखकर गिरने लगे तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिये अन्यथा गाँठों की भण्डारण क्षमता कम हो जाती है। अन्तिम सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि खुदाई के समय भूमि में थोड़ी-थोड़ी नमी रहे ताकि खुदाई में कोई दिक्कत न हो। लहसुन के खेत में कभी भी जरूरत से ज्यादा पानी नहीं भरना चाहिये। फालतू पानी को खेत से बाहर निकाल देना चाहिये नहीं तो गाँठों का सफेद रंग बदरंग हो जाता है और गाँठे खराब भी हो सकती है।

लहसुन की खेती में खरपतवार और उनका नियंत्रण (lahsun ki kheti me kharpatwar aur unka niyantran):-

लहसुन की फसल में मुख्य रूप से बथुआ, मोरेला, प्याजी, मोथा, मकड़ा, दूब तथा सत्यानाशी (कटेली) आदि खरपतवार उगते हैं जिनका खेत से निकालना आवश्यक होता है अन्यथा पौधों की बढ़वार कम होती है और गाँठे छोटी रह जाती हैं।

लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) में बोआई के दो महीने तक खुर्पी तथा ‘हैंड हो’ की सहायता से निराई-गुड़ाई का काम किया जा सकता है लेकिन दो महीने बाद जब गाँठें बढ़ने लगती हैं तो खुर्पी चलाने से उनको नुकसान पहुँचने का भय रहता है। ऐसी स्थिति में खरपतवारों को हाथ से खींचकर निकालना चाहिये।

अच्छा तो यह रहता है कि खरपतवारों को उगने से रोकने के लिये खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग किया जाये। इसके लिये बेसालिन नामक रसायन काफी अच्छा रहता है। बेसालिन (1 किग्रा० सक्रिय अवयव) को 1000 लीटर पानी में घोलकर लहसुन की बुवाई से पहले खेत में छिड़ककर मिट्टी में हैरो आदि से अच्छी प्रकार मिला देने पर अधिकतर खरपतवार नहीं उगते ।

लहसुन की खेती में रोग और उनका नियंत्रण (lahsun ki kheti me rog aur unka niyantran):-

लहसुन की खेती पर भी वे ही रोग लगते हैं जो प्याज की खेती में लगते हैं। इनका वर्णन प्याज की खेती में किया गया है।

लहसुन की खेती में कीट और उनका नियंत्रण (lahsun ki kheti me keet aur unka niyantran):-

लहसुन की खेती पर भी वे ही कीट लगते हैं जो प्याज की खेती में लगते हैं। इनका भी वर्णन प्याज की खेती में किया गया है।

यह भी पढ़ें:- प्याज में लगने वाले रोग और कीट। pyaj me lagne wale rog aur keet

लहसुन की खुदाई (lahsun ki khudai):-

जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला तथा भूरा हो जाता है ये ऊपर से सूखने लगती हैं तो लहसुन की फसल की खुदाई कर लेनी चाहिये। साधारण तौर पर लहसुन की फसल 5-6 माह में तैयार हो जाती हैं। खुदाई मार्च अप्रैल में की जाती हैं। लहसुन को खुरपी से खोदकर या हाथ से उखाड़कर कुछ गाँठों को एक साथ मिलाकर उनकी पत्तियों से छोटे-छोटे गुच्छों में बाँध देना चाहिये। इसके बाद में इनको दो-तीन दिन तक छाया में रखना चाहिये।

लहसुन की उपज (lahsun ki upaj):-

उन्नत तौर-तरीकों से खेती करने पर एक हैक्टेयर भूमि से लहसुन की 100-120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है।

लहसुन का भण्डारण (lahsun ka bhandaran):-

खुदाई के बाद गाँठों के गुच्छों को 2-3 दिन तक छाया में सुखाने के बाद किसी ऐसे कमरे में जिसमें रोशनी की अच्छी व्यवस्था हो तथा हवा का आवागमन ठीक प्रकार से होता हो, भण्डारित कर सकते हैं। भण्डारण के दौरान यदि जरूरत हो तो लहसुन की छंटाई तथा सफाई करते रहना चाहिये। शीत-गृहों में इसे 0-2 सेल्सियस तापमान और 60 प्रतिशत आपेक्षिक नमी पर भी लम्बे समय तक भण्डारित किया जा सकता है।

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विशेष जानकारी:-

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