धान का नकली स्मट रोग। dhan ka nakli smat rog। पहचान, कारण और रोकथाम।

धान का नकली स्मट रोग (dhan ka nakli smat rog) के बारे में इस लेख में जानकारी दी गई है।

इसमें धान में नकली स्मट रोग की पहचान कैसे करें?, धान में नकली स्मट रोग होने का कारण?, धान में नकली स्मट रोग की रोकथाम कैसे करें?, आदि के बारे में जानकारी दी गई है। तो आइए जानते हैं।

धान में नकली स्मट रोग की पहचान:-

धान में नकली स्मट रोग के लक्षण पुष्प निकलने के दौरान दिखाई देते हैं। और जब छोटी छोटी बालियां परिपक्वता तक पहुंचने वाली होती हैं तो इसके लक्षण और भी तेजी से दिखाई देते हैं। तथा बाद में धान के कुछ दानों में नारंगी, मखमल सा अंडाकार हिस्सा, जिसका व्यास लगभग 1 सेन्टीमीटर व्यास का हो जाता है।, अलग अलग दानों पर दिखाई देता है। और इन सबके बाद में दाने का रंग पीला-हरा अथवा हरा-काला रंग में बदल जाता है। इस रोग के प्रभाव से पौधे का अन्य कोई भाग प्रभावित नहीं होता है केवल पुष्पगुच्छ के कुछ दाने ही बीजाणु की गेंद बनाते हैं। बीज के अंकुरण और दानों के वजन में कमी आती है।

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धान में नकली स्मट रोग होने के कारण:-

धान में नकली स्मट रोग एक कवक के कारण होता है। यह विलोसिकलावा विरेंस के कारण होता है। यह एक ऐसा खतरनाक रोगजनक है जो कि सभी चरणों में पौधों को संक्रमित कर सकता है लेकिन इसकी खतरनाक खास बात यह है कि इसके लक्षण केवल फूल निकलने के तुरंत बाद या दानों के भरने के चरण के दौरान दिखाई देते हैं। और इसके संक्रमण के नतीजे, मौसम की स्थिति निर्धारित करती है। इसका कारण यह है, क्योंकि उच्च सापेक्ष आर्द्रता, निरंतर बारिश तथा 25 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान कवक के लिए अनुकूल है। नाइट्रोजन की अधिक मात्रा वाली मिट्टी भी इस रोग के विकास के लिए बिल्कुल अनुकूल होती है। तथा जल्दी लगाए जाने वाले धान के पौधों में आम-तौर पर नकली स्मट की समस्याएं कम ही होती हैं। लेकिन सबसे बुरी स्थितियों में, बीमारी गंभीर हो सकती है और फसल का नुकसान 25 प्रतिशत तक हो सकता है। लेकिन भारत में इसका नुकसान 75 प्रतिशत उपज तक देखा जा चुका है।

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धान में नकली स्मट की रोकथाम के उपाय:-

सबसे पहली और सबसे जरुरी बात यही है कि हमेशा ही प्रमाणित खुदरा विक्रेताओं से स्वस्थ्य बीज का ही प्रयोग करें। और जिस प्रजाति का बीज आप उपयोग कर रहे हों वह रोग प्रतिरोधक प्रजाति होनी चाहिए। और यदि संभव हो सके तो बीमारी की सबसे बुरी परिस्थिति से बचने के लिए पौधों की जितनी हो सके उतनी जल्दी बुवाई कर देनी चाहिए। स्थायी तौर पर पानी भरने के बजाय खेतों को भिगोने यानि कि नमी और सुखाने की एक के बाद एक प्रक्रिया अपनानी चाहिए ताकि खेत में आर्द्रता कम रह सके। तथा नाइट्रोजन उर्वरकों का कम से कम ही मात्रा में उपयोग करना चाहिए और जो भी नाइट्रोजन उर्वरक लगाने चाहिए वो भी थोड़ा-थोड़ा करके लगाना चाहिए। अगर आपके धान के खेतों में मेढ़ें और सिंचाई की नालियां बनी हों, तो उन्हें हमेशा ही साफ रखना चाहिए। खेतों को भी खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए और पिछली फसल के अवशेषों को भी हटा देना चाहिए। तथा गैर-संवेदनशील फसलों के साथ 2 या 3 वर्षीय फसल-चक्र की योजना बनानी चाहिए।

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धान का नकली स्मट रोग का जैविक नियंत्रण के उपाय:-

धान को नकली स्मट रोग से बचाने के लिए धान के बीज को बोने से पहले 52 डिग्री सेल्सियस पर 10 मिनट तक उपचार करने से संक्रमण से बचने की संभावना बढ़ जाती है। तथा पुष्पगुच्छ के शुरूआत के दौरान, तांबा आधारित कवक नाशक को रोकथाम के लिए 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से उपयोग किया जा सकता है। एक बार बीमारी का पता चलने पर, उसे नियंत्रित करने और उपज को थोड़ा बढ़ाने के लिए फसल पर तांबा आधारित कवकनाशी का छिड़काव कर देना चाहिए।

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धान का नकली स्मट रोग का रासायनिक नियंत्रण के उपाय:-

ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि उपलब्ध हो सके तो सबसे पहले जैविक नियंत्रण का ही प्रयोग करना चाहिए लेकिन उपलब्ध न हो या आप रासायनिक उपचार करना चाहते हैं तो आगे दिए गए सुझावों को अपना सकते हैं।

  • कॉपर हाइड्रोक्साइड 53.8 डीएफ (copper hydroxide 53.8 DF)
  • टेबुकोनाजोल 50.0 डब्ल्यूजी (tebuconazole 50.0 WG), ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25.0 डब्ल्यूजी (trifloxystrobin 25.0 WG)
  • पिकोक्सिस्ट्रोबिन 7.05 एससी (picoxystrobin 7.05 SC), प्रोपीकोनाजोल 11.7 एससी (propiconazole 11.7 SC)

नोट:- ऊपर दिए गए रसायनों में किसी एक का ही चयन करें।

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कॉपर हाइड्रोक्साइड 53.8 डीएफ (copper hydroxide 53.8 DF):-

01 हेक्टेयर के लिए 1.5 किलोग्राम का प्रयोग करना चाहिए और अपने एक 20 लीटर के टंकी पम्प के लिए 60 ग्राम का प्रयोग करना चाहिए तथा अपने टंकी पम्प को 25 बार भरकर डालना चाहिए।

टेबुकोनाजोल 50.0 डब्ल्यूजी (tebuconazole 50.0 WG), ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25.0 डब्ल्यूजी (trifloxystrobin 25.0 WG):-

01 हेक्टेयर के लिए 375 ग्राम का प्रयोग करना चाहिए और अपने एक 20 लीटर टंकी पम्प के लिए 15 ग्राम का प्रयोग करना चाहिए। तथा अपने टंकी पम्प को 25 बार भरकर डालना चाहिए।

पिकोक्सिस्ट्रोबिन 7.05 एससी (picoxystrobin 7.05 SC), प्रोपीकोनाजोल 11.7 एससी (propiconazole 11.7 SC):-

01 हेक्टेयर के लिए 900 मिलीलीटर का प्रयोग करना चाहिए और अपने एक 20 लीटर टंकी पम्प के लिए 40 मिलीलीटर का प्रयोग करना चाहिए तथा अपने टंकी पम्प को 23 बार भरकर डालना चाहिए।

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नोट:- किसी भी प्रकार के रसायनों का प्रयोग करते समय किसी विशेषज्ञ की सलाह जरुर ले लेनी चाहिए।

दोस्तों/किसान भाईयों आपने इस लेख में धान का नकली स्मट रोग। dhan ka nakli smat rog। पहचान, कारण और रोकथाम के उपाय। के बारे में पूरी जानकारी ली, तो अगर आप ऐसे ही कृषि से सम्बंधित सभी जानकारियां सबसे पहले पाना चाहते हैं तो लाल रंग की घंटी को क्लिक करके सब्सक्राइब करें।

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