कपास से सूती कपड़े बनाए जाते हैं और इसके बीजों में करीब 15 से 20 प्रतिशत तक तेल भी पाया जाता है कपास को अपने देश में सैकड़ों वर्षों से उगाया जा रहा है कपास की खेती कई किसान बहुत बड़े इलाके में कर रहे हैं अगर आप भी कपास की खेती करना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको पूरी जानकारी ज़रूर होनी चाहिए तो आज हम आपको बताएंगे कि कपास की वैज्ञानिक खेती कैसे करें.
मौसम और जलवायु
कपास एक खरीफ मौसम की फ़सल है कपास की बढ़वार के समय उच्च तापमान और नमी की जरूरत होती है और बाद में कम तापमान और ठंडी रातों की जरूरत होती है पौधों की वृद्धि के समय सबसे अच्छा तापमान 21 से 27 डिग्री सेल्सियस और गूलर बनते समय 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है.
कपास की बुवाई का सबसे अच्छा समय मध्य अप्रैल से मध्य मई माना जाता है जिसमें अमेरिकन कपास को 15 अप्रैल तक और देशी कपास को 15 अप्रैल से 15 मई तक बोया जाता है.
मिट्टी और खेत की तैयारी
कपास की उन्नत खेती करने के लिए काली मिट्टी, जलोढ़ मिट्टी, लाल मिट्टी और लेटराइट मिट्टी सही मानी जाती है कपास के साथ एक अच्छी बात यह है कि इसे हल्की अम्लीय और हल्की छारीय भूमि में उगाया जा सकता है लेकिन मिट्टी अधिक छारीय नहीं होनी चाहिए मिट्टी का ph 5.5 से 8.5 होना चाहिए.
और खेत की तैयारी करने के लिए एक बार मिट्टी पलट हल से जुताई करनी चाहिए इसके बाद 3 से 4 जुताइयाँ देशी हल या हैरो या कल्टीवेटर से करनी चाहिए उसके बाद पाटा चलाकर खेत को बराबर कर लिया जाता है.
उन्नत किस्में और बीज की मात्रा
कपास की दो मुख्य प्रजातियां हैं देशी किस्में और अमेरिकन किस्में जिसमें देशी किस्मों में मुख्य रूप से जी 27, श्यामली, लोहित और डी एस 1 आदि शामिल हैं जबकि अमेरिकन किस्मों में एच 777, एस एच 131, प्रमुख, हाइब्रिड 4 और बीकानेरी नर्मा आदि मुख्य किस्में हैं.
अगर बात करें बीज की मात्रा की तो देशी कपास के लिए 15 से 18 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से और अमेरिकन कपास के लिए 20 से 25 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ठीक रहता है.
खाद और उर्वरक
अगर संभव हो तो गोबर की खाद जरूर दें जिसमें आप 10 से 12 टन गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दे सकते हैं और देशी कपास में 40 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस तथा जरुरत के हिसाब से पोटाश देना चाहिए जबकि अमेरिकन कपास में 60 किलो नाइट्रोजन और 25 से 30 किलो फॉस्फोरस तथा जरुरत के हिसाब से पोटाश देना चाहिए.
जिसमें नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा और फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की जुताई के समय देनी चाहिए इसके बाद बुवाई के लगभग 30 से 35 दिनों बाद एक तिहाई नाइट्रोजन को खेत में देना चाहिए इसके बाद बुवाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद बची हुई एक तिहाई नाइट्रोजन को खेत में और डाल देना चाहिए.
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
सबसे पहले कपास को बोने से पहले पलेवा के रूप में एक सिंचाई करते हैं इसके बाद बुवाई के लगभग 40 से 45 दिन बाद सिंचाई करते हैं बीच में वर्षा होने की वजह से सिंचाई की जरुरत नहीं पड़ती है लेकिन अगर सूखा पड़ जाये तो सिंचाई कर देनी चाहिए.
इसके बाद देशी कपास में अंतिम सिंचाई सितम्बर में जबकि अमेरिकन कपास में अंतिम सिंचाई अक्टूबर में करनी चाहिए कपास में मुख्य सिंचाई की अवस्थाएं अंकुरण के समय, फूल आते समय, गूलर बनते समय की अवस्थाएं हैं.
प्रमुख रोग और कीट
कपास की फसल में कई रोग और कीट लगते हैं जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं जिसमें से प्रमुख रोग म्लानि, जड़ सड़न, एथ्रेक्नोज और जीवाणु झुलसा आदि हैं जबकि मुख्य कीटों में हरा तेला, चितकबरी सूंडी, गुलाबी सूंडी और पट्टी लपेटक आदि शामिल हैं इनके नियंत्रण के लिए आप जैविक और रासायनिक तरीकों को अपना सकते हैं.
कटाई और उपज
बुवाई के लगभग 70 से 80 दिनों बाद कपास की फसल में फूल लगने लगते हैं और यह फूल लगभग 8 से 10 सप्ताह तक रहते हैं जिनकी तुड़ाई की जाती है देशी कपास में लगभग 8 से 10 बार फूलों की तुड़ाई की जाती है जिसमें दो तुड़ाइयों के बीच 5 से 6 दिनों का अंतर रखा जाता है जबकि अमेरिकन कपास में 4 से 5 बार फूल तोड़ने होते है जिसमें दो तुड़ाइयों के बीच लगभग 10 से 12 दिनों का अंतर रखा जाता है.
अगर आपने कपास की उन्नत किस्मों को बोया है तो आप 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज पा सकते हैं.
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कपास को अधिक दामों में कैसे बेचें
कपास से अधिक मुनाफा कमाने के लिए आपको सही समय पर कपास की गांठों की तुड़ाई करनी चाहिए तुड़ाई में देरी से फूल नीचे खेत में गिर जाते हैं जिससे कपास की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तुड़ाई के बाद आपको किसी फैक्ट्री से संपर्क करके अपनी फसल को सीधे बेच देना चाहिए.
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