आलू की खेती। aalu ki kheti। potato farming। पूरी जानकारी।

साल भर प्राप्त होने वाली सब्जियों में आलू का प्रमुख स्थान है। आलू एक पूरा भोजन है। आलू की खेती से किसान भाईयों को अन्य खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा अधिक आमदनी मिलती है। क्योंकि आलू कम समय में तैयार होकर प्रति हेक्टेयर अधिक पैदावार देता है। किसी भी फसल चक्र में आलू समावेशित किया जा सकता है। आलू को बेचने में भी सुगमता है। आलू की खेती को लगभग विश्वभर में किया जाता है भारत में आलू की खेती करने वाले प्रदेशों में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि हैं।

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आलू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:-

आलू की खेती करने के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधों की वृध्दि के समय 24डिग्री सेल्सियस और कंद बनने के समय 17 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। आलू बनने तथा बढ़ने के लिए लंबी रातें और छोटे चमकीले दिन अच्छे रहते हैं और ध्यान देने वाली बात यह है कि आलू की फसल पर पाले का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मौसम में लम्बे समय तक बादलों का छाया रहना, अधिक आर्द्रता, कोहरा, आदि से आलू की खेती में झुलसा रोग लग जाता है।

आलू की खेती के लिए उपयुक्त भूमि:-

आलू की खेती करने के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा अच्छी रहती है।, जिसमें कि जल के निकास का अच्छा प्रबंध हो और भूमि उर्वर हो। हल्की अम्लीय भूमि (जैसे कि pH 6 से pH 6.5) में आलू की बहुत अच्छी उपज मिलती है। क्षारीय तथा भारी भूमियां आलू की खेती के लिए अच्छी नहीं मानी जाती हैं।

आलू की खेती करने के लिए खेत की तैयारी:-

आलू के लिए खेत की तैयारी अच्छी तरह से करना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि इसी पर आलू के कंदों का आकार और उनका विकास निर्भर करता है पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद, बाद की जुताइयां देसी हल या हैरो से करके प्रत्येक जुताई के बाद की पाटा लगा देना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसी समय गोबर की खाद मिला दी जाती है अंतिम जुताई के समय लिंडेंन 1.3%, 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए जिससे कि जमीन में रहने वाले कीड़े (जैसे: दीमक, कुतरा, कुरमुला) मर जाते हैं।

आलू की खेती के लिए उन्नत किस्में:-

आलू की खेती करने के लिए तीन प्रकार की किस्में हैं जैसे कि: अगेती किस्में, मध्यकालिक किस्में, पछेती किस्में।

अगेती किस्में:-

यह किस्में 80-100 दिनों में तैयार हो जाती हैं।
कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका, कुफरी बहार, कुफरी अलंकार, कुफरी लवकार, कुफरी मोती, कुफरी नवताल, कुफरी पुखराज, आदि।

मध्यकालिक किस्में:-

यह किस्में 100-110 दिनों में तैयार हो जाती हैं।
कुफरी आनंद, कुफरी बादशाह, कुफरी शीतमान, कुफरी चमत्कार, कुफरी जीवन, कुफरी कुंदन, कुफरी शक्ति, कुफरी नवज्योति, आदि।

पछेती किस्में:-

यह किस्में 110-120 दिनों में तैयार हो जाती हैं।
कुफरी देवा, कुफरी सिंदूरी, C-140, कुफरी लालिमा, कुफरी नवीन, कुफरी किसान, कुफरी सतलज, कुफरी बादशाह, आदि।

फसल चक्र:-

आलू की फसल जल्दी ही तैयार हो जाती है, इसीलिए इसे बहुत से फसल चक्रों में आसानी से सम्मिलित किया जा सकता है कुछ फसल चक्र आगे दिए गए हैं।

क्र•सं•फसलेंसमय
1.मक्का-आलू-गेहूं 1 वर्ष
2.मक्का-आलू-प्याज1 वर्ष
3.मक्का-आलू-आलू1 वर्ष
4.धान-आलू-लोबिया1 वर्ष
5.लोबिया-आलू-गेहूं1 वर्ष
6.धान-आलू-मक्का1 वर्ष
7.मक्का-आलू-मक्का1 वर्ष
8.सोयाबीन-आलू-लोबिया1 वर्ष
9.मक्का-आलू-तम्बाकू1 वर्ष
10.मक्का-आलू-गन्ना2 वर्ष
आलू का फसल चक्र

आलू के बीज की बुवाई:-

आलू के बीज की बुवाई मुख्य रूप से कुछ चरणों में पूरी की जाती है।

बीज का चुनाव:-

अधिक से अधिक उपज पाने के लिए सदा ही प्रमाणित बीज बोने चाहिए। बहुत अधिक छोटे आकार के बीज नहीं होने चाहिए क्योंकि अधिकतर छोटे आकार के बीज रोगग्रस्त होते हैं। प्रयोगों के द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि छोटा आलू देर से और कम फूटता है।, जबकि बड़ा आलू 5 से 6 दिन पहले ही अंकुरित हो जाता है इससे फसल भी जल्द ही तैयार हो जाती है। बड़े बीज से छोटे बीज की अपेक्षा पौधा अधिक स्वस्थ्य तथा मजबूत होता है। कम से कम 2.5 से 3.0 सेंटीमीटर व्यास वाले आलू, जिनका वजन लगभग 25 से 30 ग्राम हो, बोने के लिए अच्छे होते हैं आलू का बीज सदैव रोग रहित तथा शुद्ध प्रजाति का होना चाहिए।

बीज का उपचार:-

शीत ग्रह से आलू निकालने के बाद लगभग 8 से 10 दिन तक किसी ठंडे स्थान में छाया में फैला देना चाहिए। अगेती फसल के लिए कंद ही होने चाहिए। मध्यम या पछेती फसल में टुकड़ों को बोया जा सकता है। टुकड़ों को काटने के लगभग 12 घंटे बाद परंतु 24 घंटे से पहले ही बो देना चाहिए। यदि काटते समय कोई कंद रोग ग्रसित हो तो उसे फेंक देना चाहिए और चाकू को साबुन के घोल, ऐल्कोहल या स्प्रिट में धोकर ही काम में लाना चाहिए। आलू पूरा बोया जा रहा हो या काटकर, बोने से पहले बीज को 0.25% एरिटोन या टेफासान के घोल में कम से कम 5 मिनट तक अवश्य डुबो लेना चाहिए। ताकि आलू को सड़ने तथा ब्लैक स्कर्फ रोग से बचाया जा सके। आलू की सुषुप्ता अवस्था को तोड़ने के लिए आलू के कटे या समूचे टुकड़ों को 1% थायोयूरिया या पोटैशियम थायोसाइनेट के घोल में 1 घंटे तक उपचारित करते हैं। थायोयूरिया की एक किलोग्राम मात्रा 10 कुंतल बीज का उपचार कर देती है इसके कारण अंकुरण जल्दी और अच्छा होता है।

बुवाई का समय:-

आलू की बुआई का समय उसकी किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है। आलू बोने का उचित समय उस समय होता है जब अधिकतम तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्सियस होता है।

बीज की मात्रा:-

आलू की एक हेक्टेयर फसल बोने के लिए लगभग 20 से 25 क्विटंल (2.5-3.0 सेन्टीमीटर व्यास आकार वाले) समूचे कंदों की जरुरत होती है। जब आलू को काटकर बोते हैं तो लगभग 12 से 15 क्विटंल बीज पर्याप्त रहता है।

बीज बोने की उचित दूरी:-

आलू को 45 से 60 सेन्टीमीटर की दूरी पर बनी कतारों में बोना चाहिए और कतारों में पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेन्टीमीटर रखनी चाहिए और यदि किसी कारणवश बड़े आकार के आलू बोने पड़ें तो पौधे से पौधे की दूरी बढ़ाकर 30 सेन्टीमीटर भी कर सकते हैं।

बुवाई की विधि:-

आलू बोने की कई विधियां प्रचलित हैं जो भूमि की किस्म, खेत में नमी की मात्रा, मजदूर एवम् यंत्रों की उपलब्धता, आदि बातों पर निर्भर करती है। साधारण रूप में आलू की बुवाई चार प्रकार से करते हैं।

समतल भूमि में आलू बोना:-

इस विधि में रस्सी से खेत में सीधी कतारें 45 से 60 सेन्टीमीटर की दूरी पर डाली जाती हैं इसके बाद लकीरों पर हैंड हो या प्लेनेट जूनियर देशी हल की सहायता से उथले कूंड़ बना लिए जाते हैं इन कूंड़ों आलू बोने के बाद ऊपर से मिट्टी से ढककर खेत को समतल कर दिया जाता है।

मेड़ों पर आलू बोना:-

इस विधि में उचित दूरी पर मेड़ बनाने वाले यंत्र से मेड़ें बना ली जाती हैं इसके बाद आलू के बीज को 20 से 25 सेन्टीमीटर की दूरी पर और लगभग 8 से 10 सेन्टीमीटर की गहराई पर बो दिया जाता है।

बोने के बाद मिट्टी चढ़ाना:-

इस विधि में पहले खेत में 60 सेन्टीमीटर की दूरी पर लाइने खींच ली जाती हैं इसके बाद इन लाइनों पर 20 से 25 सेन्टीमीटर की दूरी पर आलू का बीज रख दिया जाता है इसके बाद फावड़े की मदद से बीजों पर दोनों तरफ से मिट्टी चढ़ा दी जाती है।

पोटैटो प्लांटर से आलू बोना:-

पोटैटो प्लांटर से आलू की बुवाई करने पर अधिक क्षेत्रफल में जल्दी बुवाई हो जाती है। साथ ही इसमें मिट्टी भी नहीं चढ़ानी पड़ती है, क्योंकी आलू के विकास के लिए पर्याप्त मोटाई की मेड़ें बन जाती हैं।

आलू की खेती करने के लिए खाद और उर्वरक:-

आलू की भरपूर उपज के लिए संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरक देना आवश्यक है प्रयोगों के द्वारा यह ज्ञात हुआ है, कि आलू की प्रति हेक्टेयर 250 क्विंटल उपज देने वाली फसल एक हेक्टेयर भूमि से 110 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस, 225 किलोग्राम पोटैशियम खींच लेती है आलू के पौधों के विकास के लिए नाइट्रोजन बहुत जरुरी है। उर्वरक सदा ही मिट्टी की जांच कराकर ही डालने चाहिए। अगर जांच न करा सकें तो किसी विशेषज्ञ की सलाह जरुर ले लेनी चाहिए।

आलू की खेती के लिए सिंचाई और जलनिकास:-

आलू की खेती करने में सिंचाई की अधिक जरुरत पड़ती है पहली सिंचाई आलू जमने के तुरंत बाद की जाती है यह सिंचाई बुवाई के 25 दिन बाद करनी चाहिए इसके बाद जरुरत के अनुसार 10 से 15 दिनों के अंतर से पानी देते रहें। खुदाई से 15 से 20 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। मिट्टी चढ़ाने के बाद सींचाईं करना जरुरी होता है।

आलू की खेती करने में निराई तथा गुड़ाई:-

आलू की फसल में निराई और गुड़ाई का मुख्य उद्देश्य खरपतवार नियंत्रण और नमी का संरक्षण है आलू में पहली निराई खुरपी के द्वारा पहली सिंचाई के बाद करनी चाहिए।

आलू की फसल में मिट्टी चढ़ाना:-

आलू में मिट्टी चढ़ाना एक बहुत ही जरुरी प्रक्रिया है मिट्टी चढ़ाने का कार्य बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करते हैं इसके पहले सिंचाई और निराई-गुड़ाई कर देते हैं नाइट्रोजन की शेष मात्रा की टॉपड्रेसिंग करके ही मिट्टी चढ़ानी चाहिए। अगर मिट्टी चढ़ाने के बाद भी पौधे की जड़ें मिट्टी से पूरी तरह ढकती नहीं हैं तो कंद बाहर निकल आते हैं जिनका रंग हरा हो जाता है। जो कि एक जहरीला यौगिक होता है और यह स्वाद में तीखा होता है। पहली बार मिट्टी चढ़ाने के 15 से 20 दिनों बाद दोबारा मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

आलू की फसल में खरपतवार और उनका नियंत्रण:-

आलू के खेत में खरपतवारों (जैसे: बथुआ, मोथा, तिपतिया, कृष्णनील, आदि) को नष्ट करने के लिए पहली निराई की जाती है और आलू में मिट्टी को चढ़ाते समय भी खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
खरपतवारनाशी रसायन लासो 4-5 लीटर/हेक्टेयर की दर से बुवाई के 2 से 3 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। सिंकार 70% भी आलू में खरपतवार नियंत्रण के लिए अच्छी प्रमाणित हुई है।

आलू की फसल के प्रमुख रोग तथा उनकी रोकथाम:-

अगेती झुलसा (early blight):-

यह रोग ऑल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंदी से होता है। बोने के 20 से 25 दिनों के बाद पत्तियों पर गहरे बादामी या काले रंग के घेरों के रुप में धब्बे पड़ जाते हैं रोगी पत्तियों के किनारे फट जाते हैं और वे सूख जाते हैं।

रोकथाम:-

इस रोग की रोकथाम के लिए डाईथेन एम• 45 या डाईथेन जेड• 78 की 2 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर रोग दिखाई देने पर 10 से 15 दिनों के अंतर से 3 छिड़काव करने चाहिए या मेटालिक्सल 0.2% के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

पछेती झुलसा (late blight):-

यह रोग फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टैंस नामक फफूंदी के द्वारा पैदा होता है। इस रोग के होने पर पत्तियों पर भूरे या काले रंग के अनियमित आकार के धब्बे किनारों से प्रारंभ होते हैं और मध्य की ओर फैलते हैं अंत में पत्तियां सूख जाती हैं भूरे रंग के धब्बे पत्तियों की नसों, तनों और डंठलों पर उभरते हैं जो बाद में काले पड़ जाते हैं।

रोकथाम:-

इस रोग की रोकथाम के लिए डाईथेन एम• 45 या डाईथेन जेड• 78 की 2 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर रोग दिखाई देने पर 10 से 15 दिनों के अंतर से 3 छिड़काव करने चाहिए या मेटालिक्सल 0.2% के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

मोजैक रोग (mosaic):-

यह रोग विषाणुओं के द्वारा फैलता है पत्तियां अजीब ढंग से हरी तथा पीली पड़कर सिकुड़ जाती हैं रोगी पौधों में आलू छोटे आकार के लगते हैं पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है। यह रोग माहू द्वारा फैलता है।

रोकथाम:-

इसकी रोकथाम के लिए रोगी पौधों को खेत से बाहर निकालकर जला देना चाहिए। स्वस्थ्य बीज बोना चाहिए। माहू की रोकथाम के लिए 01लीटर मेटासिस्टॉक्स 25 ई•सी• को 1000 लीटर पानी में घोलकर 2 से 3 छिड़काव करने चाहिए।

काली रूसी:-

कंद की सतह पर अनियमित उभरे हुए काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं इन काले निशानों को रगड़कर आसानी से हटाया जा सकता है। लेंस की मदद से धब्बे के आसपास सफेद रंग के कवकजाल को देखा जा सकता है।

रोकथाम:-

पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी देना चाहिए खासकर शुष्क मौसम के दौरान, बीजों को गर्म मिट्टी (8 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) में बोना चाहिए। जैविक कवकनाशी, ट्राइकोडर्मा हर्जेनियम या गैर-रोगजनक रिजोक्टोनिया प्रजातियों को हल रेखा में लगाना चाहिए।

आलू की फसल में लगने वाले प्रमुख कीड़े और उनकी रोकथाम:-

माहू (aphids):-

माहू कीड़ा आलू की फसल को बहुत हानि पहुंचाता है माहू हरे रंग का छोटा रस चूसने वाला कीड़ा है जिसकी लम्बाई 02 मिमी• के लगभग होती है। इसके शिशु और वयस्क, दोनों फसल को हानि पहुंचाते हैं।

रोकथाम:-

इसकी रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ई•सी• 1.25 लीटर मेटासिस्टोक्स या साइपरमेथ्रिन 1लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

कुतरा (cutworm):-

कुतरा कीड़े की‌ सूंड़ियां आलू के पौधे की शाखाओं को और उगते हुए आलुओं को काट देती हैं रात्रि में फसल को नुकसान पहुंचाती हैं इसकी सूंड़ी का रंग हरा होता है।

रोकथाम:-

इसकी रोकथाम के लिए लिंडेन 1.3% चूर्ण, 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले भूमि में मिला देनी चाहिए।

छैना कीट (epilachna beetle):-

यह आलू का मुख्य कीड़ा है इसके ग्रब और प्रौढ़ पौधों की पत्तियां खुरचकर खाते हैं।

रोकथाम:-

इसकी रोकथाम के लिए 10% सेविन धूल का 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करने पर इसका प्रकोप कम हो जाता है।

आलू का पतंगा:-

यह पतंगा कई प्रकार के सोलेनेसी फसलों पर भोजन करता है। लेकिन आलू इसका बहुत ही पसंदीदा है। यह कीड़ा आलू की पत्तियों, तनों, डंठलो और कंदों पर हमला करते हैं। इससे तने कमजोर होकर टूट जाते हैं और पौध मर जाते हैं।

रोकथाम:-

स्वस्थ्य पौधे से लिए गए कंद ही बीज के लिए प्रयोग करें। 7 से 10 डिग्री सेल्सियस तापमान पर आलू का स्टोर करें। थायोडिकार्ब 75.0 wp रसायन का भी प्रयोग कर सकते हैं।

आलू की खुदाई:-

आलू की खुदाई कुछ इस प्रकार करते हैं।
अगेती फसल: नवम्बर से दिसम्बर
मुख्य फसल: फरवरी से मार्च
पछेती फसल: अप्रैल से प्रारम्भ मई

आलू पकने से पहले कच्चा खोदकर भी बाजार भेजा जा सकता है।

जब आलू के पौधे की पत्तियां सूखने लगें तो आलू की खुदाई करने के 15 दिन पहले पौधे की शाखाओं को भूमि की सतह से काट देना चाहिए जिससे आलुओं का छिलका कठोर हो जाता है। आलुओं की खुदाई खुरपी, फावड़े या
पोटैटो डिगर की मदद से की जा सकती है। खुदाई में कटे, गले, रोगी आलुओं को अलग निकालकर श्रेणीकरण करना चाहिए।

श्रेणी:-

A: 5-8 सेन्टीमीटर व्यास के कंद
B: 3.75-5 सेन्टीमीटर व्यास के कंद
C: 2.5-3.75 सेन्टीमीटर व्यास के कंद

आलू की फसल की खुदाई करते समय ध्यान देने योग्य बातें:-

  • छिलका पकने पर फसल की खुदाई करें।
  • खुदाई प्रारम्भ करने के 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
  • आलू खुरपी से कटने नहीं पाए और कटे आलू को अलग कर देना चाहिए।
  • आलू का छिलका न उतरने पाए।
  • आलू को खोदने के बाद ठंडी जगह में ढेर लगाकर चटाई से ढककर रखना चाहिए, जिससे छिलका कठोर हो जाता है।

आलू की उपज:-

आलू की उपज किस्मों और बोने के समय के आधार पर निर्भर करती है।

अगेती तथा मध्यकालिक फसल: 175 से 200 क्विटंल प्रति हेक्टेयर
पछेती फसल: 300 से 400 क्विटंल प्रति हेक्टेयर
पर्वतीय क्षेत्रों में: 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

आलुओं में विपणन:-

खुदाई के बाद आलुओं को 3-4 दिन तक ढेर बनाकर छाया में रखने से कंदो पर लगी मिट्टी साफ हो जाती है, छिलका कठोर हो जाता है। कटे-गले आलुओं को अलग निकालकर अच्छा आलू बाजार भेजना चाहिए।

आलू का भण्डारण:-

स्वस्थ्य तथा साफ आलुओं को बगीचों अथवा छायादार व हवादार जगहों में लम्बे ढेर, जिनकी ऊंचाई 01 मीटर तथा भूमि पर चौड़ाई 3-4 मीटर से अधिक न हो, को भली प्रकार 6 इंच मोटी फूस/पुआल से ढककर मार्च से मई तक भंडारित किया जा सकता है।
आलू पर CIPC 1% कैमिकल की 250 ग्राम प्रति कुंटल धूल अथवा धुंध के उपचार से आलू में 100 दिनों तक अंकुरण और सिकुड़न नहीं होती है।
मैदानी इलाकों में आलुओं को खराब होने से बचाने के लिए शीतग्रहों में रखने की जरुरत पड़ती है इन शीतगृहों में तापमान 01 डिग्री से 2.5 डिग्री सेल्सियस तथा आपेक्षिक आर्द्रता 90 से 95 प्रतिशत रहनी चाहिए।

आलू के बीज का उत्पादन:-

  • बीज के लिए आलू का उत्पादन करने में आगे दी गई बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
  • बोने के लिए प्रमाणित और रोगमुक्त बीज का प्रयोग करें।
  • बुवाई के लिए समूचे आलुओं को प्रयोग में लेना चाहिए।
  • बीज को बोने से पहले एरिटॉन के 0.25% घोल में डुबोकर बोना चाहिए।
  • 01 अक्टूबर से 15 अक्टूबर के बीच बुवाई करनी चाहिए।
  • नाइट्रोजन की मात्रा 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें, ऐसा करने से वृद्धि अधिक नहीं होती है।
  • पौधों का अंतरण कम (45×15 सेन्टीमीटर) रखें। फासला कम करने से उचित परिमाप का आलू पैदा होता है।
  • आलू अच्छी प्रकार से बैठने पर दिसम्बर के मध्य तक सिंचाई कम करके, बाद में बिल्कुल ही बंद कर देनी चाहिए। जिससे जनवरी के मध्य तक पत्तियां और शाखाएं सूख जाएं और माहू का आक्रमण न हो सके।
  • शाखाओं को 10 से 15 जनवरी के बीच काटकर फेंक देना चाहिए।
  • आलू को भूमि के अंदर जनवरी के अंत तक छोड़ देना चाहिए जिससे आलू का छिलका सख्त हो जाए।
  • फसल को झुलसा व रोगों व कीटों से बचाव के लिए फफूंदी नाशक तथा कीट नाशक रसायनों का छिड़काव करते रहना चाहिए।
  • फसल का समय-समय पर निरीक्षण करके अवांछित पौधों को निकाल देना चाहिए।

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Images source: Pixabay


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