बकरी पालन व्यवसाय। bakri palan business। goat farming in hindi। पूरी जानकारी।

बकरी पालन बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है इस व्यवसाय को कोई भी व्यक्ति बड़ी ही आसानी से कर सकता है बल्कि इस व्यवसाय को खेती करने के साथ में ही कर सकते हैं। कई किसान भाई खेती करने के साथ साथ बकरी पालन करते भी हैं बकरी एक बहुत ही उपयोगी और सुन्दर पशु है और दुधारू पशुओं में इसका बड़ा ही महत्व है घरेलू पशुओं में अन्य कोई भी ऐसा पशु नहीं है जिसे इतने कम व्यय पर पाला जा सके, जितने पर बकरी पाली जाती है इसलिए बकरियों को गरीबों की कामधेनु भी कहा जाता है। तो आज इस लेख में आप लोग बकरी पालन अथवा बकरी पालन बिजनेस के बारे में सबकुछ जानेंगे।

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बकरी पालन हेतु बकरियों का चुनाव:-

दुधारू बकरी का चुनाव करते समय आगे दी गई बातों का ध्यान रखना चाहिए।
नस्ल के अनुसार 40 से 50 किलोग्राम की दुधारू बकरियां अच्छी मानी जाती हैं।
बकरी का शरीर बड़ा होना चाहिए।
बकरी को बगल, सामने तथा ऊपर से देखने पर उसका शरीर क्रमश: लम्बा, भरा हुआ तथा नुकीला होना चाहिए।
दुधारू बकरी की खाल मुलायम और ढीली होनी चाहिए।
आंतें लचकदार होनी चाहिए।
बकरी के अगले पैरों के बिल्कुल पीछे से उसका पेट थोड़ा झुका हुआ होना चाहिए। और बांक के पास थोड़ा उठा होना चाहिए।
बकरी देखने में स्वस्थ्य हो और आंखें चमकदार होनी चाहिए।
अयन लम्बा हो जो जांघों के बीच में पीछे तक चले गए हों तथा पेट की तरफ झुके हों अयन शरीर से अच्छी प्रकार जुड़ा होना चाहिए।
अयन स्पंज की तरह मुलायम हों तथा दूध दुहने के बाद सिकुड़ जाना चाहिए।
दुध की नालियां लम्बी और उभरी हुई होनी चाहिए।
थन मध्यम आकार के 8 से 10 सेंटीमीटर लम्बे और एक से होने चाहिए। थन लटके हुए नहीं बल्कि उभरे हुए होने चाहिए।

बकरी की नस्लें:-

किसान भाईयों देश में अधिकतर जगहों में बकरियां ऐसी हैं जो कि किसी निश्चित नस्ल के रूप में नहीं पहचानी जा सकती हैं फिर भी कुछ ऐसी जगहें हैं जहां पर कुछ बकरियों की प्रजातियां बहुत प्रचलित हैं। लेकिन बकरी पालन करते समय आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि आप किस प्रकार की बकरियां पालना चाहते हैं। आगे हम कुछ नस्लों का वर्णन कर रहे हैं।

बकरी की नस्लों का वर्गीकरण:-

बकरी की नस्लों का वर्गीकरण मुख्य रूप से चार प्रकार से किया जाता है।

दुधारू नस्लें:-

वह नस्लें जिसकी बकरियां अन्य नस्लों की अपेक्षा में अधिक दूध देती हैं।
जैसे- बीटल, मालाबारी, सूरती, मेहसाना, जखराना।
विदेशी नस्लें: सानेन, दमस्कस, ब्रिटिश एल्पाइन, न्यूवियन, टोगेन वर्ग, आदि।

मांस की नस्लें:-

वह नस्लें जिसकी मादाएं दूध बहुत कम देती हैं और नरों को बधिया करके उससे अधिक मात्रा में मांस प्राप्त किया जाता है।
जैसे- आसाम हिल बरबरी, ब्लैक बंगाल, गंजम, कच्छी।
विदेशी नस्लें: बोइर, मातऊ, फिजियन, आदि।

द्विउद्देशीय नस्लें:-

वह नस्लें जिसकी मादाएं अच्छा दुग्ध उत्पादन दें और जिसके नर काफी मात्रा में मांस उत्पादन दें।
जैसे- जमनापारी, ओस्मानाबादी, मरवाड़ी, सिरोही, जलवादी, आदि।

ऊन वाली नस्लें:-

वह नस्लें जिससे अच्छा ऊन उत्पादन लिया जा सके।
जैसे- चेंगू, गद्दी, चंगथांगी, बाखरवल, कश्मीरी, आदि।
विदेशी नस्ल: अंगोरा, आदि।

जमनापारी बकरी:-

इस नस्ल की बकरियां दो-काजी होती हैं मतलब कि दो काम के लिए होती हैं। अर्थात् दूध तथा मांस का उत्पादन करती हैं जो बकरियां केवल दूध के उद्देश्य से पाली जाती हैं वह बकरियां 4-5 किलोग्राम तक दूध प्रतिदिन देती हैं। इस जाति की बकरियां चरना ज्यादा पसंद करती हैं और घरों में बांधकर रखे जाने पर यह जल्द ही बीमार हो जाती हैं इसलिए ये गांव में रखे जाने के लिए ज्यादा सही हैं ये वर्ष में केवल एक बार ब्यांती हैं इनका प्रसव काल 150 दिन का होता है और ऋतुकाल का मौसम मई से जुलाई तक होता है इनमें प्रथम ब्याँत की आयु दो वर्ष होती है।

बरबरी बकरी:-

आमतौर पर यह बकरियां प्रतिदिन 0.76 से 1.3 किलोग्राम दूध देती हैं परन्तु अच्छी बकरियां 2.5 किलोग्राम तक दूध दे सकती हैं। इन बकरियों का कद नाटा होने के कारण इनको मांस के प्रयोग की अपेक्षा दूध के प्रयोग में अधिक लाया जाता है। एक बकरी एक ब्यांत में 1से3 बच्चे तक दे देती है और दो साल में तीन बार ब्यांती है। और प्रसवकाल लगभग 146 दिनों का होता है इनमें प्रथम ब्याँत की उम्र 17 महीने होती है।

सूरती बकरी:-

इस नस्ल की बकरियां 1 से 2 किलोग्राम दूध हर रोज देती हैं इनका प्रति किलोग्राम दूध पर चारा उपभोग अन्य बकरियों की अपेक्षा में कम होता है। इस नस्ल की बकरियों के पैर छोटे-छोटे होते हैं। अनेक नगरों में इस नस्ल की बकरियों को पाला जाता है।

कश्मीरी बकरी:-

इस नस्ल की बकरियां लगभग 22 महीने की उम्र में प्रथम बार बच्चा देती हैं तथा सामान्य तौर पर एक बार में 1 से 2 बच्चे पैदा करती हैं यह मुख्य रूप से पश्मीना ऊन उत्पादन हेतु पाली जाती हैं पश्मीना का वार्षिक उत्पादन 56 ग्राम प्रति पशु तक होता है।

गद्दी या चम्बा बकरी:-

इस बकरी को मुख्य रूप से ऊन के लिए पाला जाता है इसकी ऊन से रस्सियां बनाई जाती हैं इसकी ऊन का वार्षिक उत्पादन लगभग 700 ग्राम से 1 किलोग्राम तक होता है यह मांस तथा बोझा ढोने हेतु भी पाली जाती हैं।

बीटल बकरी:-

यह बकरी दूध तथा मांस के लिए बहुत ही उपयोगी है सरकारी फार्म हिसार पर यह बकरियां पाली जाती हैं। इसका प्रतिदिन दूध उत्पादन 4.5 किलोग्राम तक भी पाया गया है औसत रूप से यह बकरियां 224 दिन के ब्यांत में लगभग 195 किलोग्राम दुग्ध उत्पादन करती हैं इनसे मांस का प्रतिशत 46.9% तक पाया जाता है।

अंगोरा बकरी:-

मोहर प्राप्ति उनकी विशेष उपयोगिता है इन बकरियों का संकरण प्रायः गद्दी जाति के बकरों से कराया जा रहा है। एक बकरी से 1 वर्ष में लगभग 1 से 1.5 किलोग्राम मोहर प्राप्त होता है, जिससे दरियां, कंबल तथा ऊन के साथ मिलाकर कपड़ा बनाया जाता है।

बकरी का भोजन:-

बकरी एक ऐसा पशु है जो खराब से खराब और कम से कम चारे पर अपना निर्वाह कर लेती है। बकरी हरी घास, कंटीली झाड़ी तथा पेड़ पौधों की पत्तियों से अपना निर्वाह करना खूब पसंद करती है। बकरी पीपल, नीम और बेर की पत्तियों को खूब खाती है। सर्दियों के मौसम में रातें लंबी होती हैं अतः दिन की चराई रात्रि के लिए पर्याप्त नहीं होती है इन दिनों के लिए बकरियों को हरा चारा दिए जाने की व्यवस्था करनी चाहिए प्रति बकरी 2 किलोग्राम हरा चारा रात के लिए पर्याप्त होता है चारे को बांधकर लटका देना चाहिए नहीं तो बकरियां पैरों से कुचलकर उसे खराब कर देती है बकरियों को गीला चारा बिल्कुल नहीं खिलाना चाहिए बकरियों के दाने की मात्रा दूध उत्पादन पर निर्भर करती है। प्रति उत्पादन दूध के लिए 300 ग्राम दाना देना चाहिए दाने में दो भाग दला हुआ चना और एक भाग गेहूं की चोकर देनी चाहिए।

बकरियों के भोजन संबंधी मुख्य जानकारी:-

बकरियों को यदि चारागाह में नहीं भेजा जाता है तो दिन में उन्हें तीन बार- सुबह, दोपहर तथा शाम को चारा देना चाहिए।
वैसे तो बकरियों की चारे की मात्रा सटीक निश्चित नहीं है, लेकिन उन्हें इतना चारा जरुर मिलना चाहिए जितना की बकरी एक बार में उस चारे को समाप्त कर ले।
एक औसत दुधारू बकरी को दिन में करीब 3.5 से 5.0 किलोग्राम चारा मिलना चाहिए इस चारे में कम से कम 1.0 किलोग्राम सूखा चारा (जैसे: अरहर, चना अथवा मटर की सूखी पत्तियां या अन्य कोई दलहनी घास) होना चाहिए।

  • बकरियों के भोजन की मात्रा निश्चित करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
  • एक वयस्क बकरी को 50 किलोग्राम भार के पीछे 500 ग्राम राशन देना चाहिए।
  • दुधारू बकरी के लिए 3.0 किलोग्राम दुग्ध उत्पादन पर 1.0 किलोग्राम राशन देना चाहिए।
  • 9 से 12 महीने तक की आयु के बच्चों को 250 से 500 ग्राम राशन प्रतिदिन देना चाहिए।
  • प्रसव से दो महीने पहले गर्भकाल का राशन 500 ग्राम प्रतिदिन देना चाहिए।
  • बकरे को साधारण दिनों में 350 ग्राम राशन प्रतिदिन तथा प्रजनन काल में 500 ग्राम राशन प्रतिदिन देना चाहिए।
  • दुग्ध से सूखी बकरी को सुबह-शाम में 400 ग्राम राशन प्रतिदिन देना चाहिए।

खनिज लवण:-

दुधारू बकरियों को उनकी खुराक में कुछ खनिज मिश्रण भी देने चाहिए। आगे दिए गए खनिज पदार्थ मिलाकर बकरियों की खुराक में देने चाहिए।

क्र•सं•खनिज मिश्रणप्रतिशत मात्रा
1.हड्डी का चूरा40
2.पिसा हुआ चूना या खड़िया30
3.नमक23
4.गंधक5
5.आयरन ऑक्साइड2
ऊपर दिए गए मिश्रण रातब में 02 प्रतिशत के हिसाब से मिलाकर देना चाहिए।

बकरियों का प्रजनन:-

बकरा 6 से 12 महीने में और बकरी 14 से 18 महीने में वयस्क हो जाती हैं बकरियां प्रायः वर्ष में एक बार बच्चा देती है अधिकतर बकरियां अक्टूबर-नवंबर अथवा मई-जून में गाभिन होते हैं गर्भकाल 142 से 50 दिन का होता है इस प्रकार अक्टूबर में गाभिन हुई बकरियां फरवरी में और मई में गाभिन बकरियां सितंबर में ब्यांती हैं। बकरियों को भली प्रकार खिलाए पिलाए जाने पर पूरे वर्ष में दो बार भी बच्चा देती हैं एक बार में एक से लेकर 4 बच्चे तक होते हैं दूसरे तीसरे बार में बकरियों का दुग्ध उत्पादन सबसे अधिक होता है 7 वर्ष की आयु तक बकरियां पर्याप्त दूध देती रहती हैं फिर दूध की मात्रा धीमे-धीमे कम होने लगती है और बकरियां 12 वर्ष की आयु तक जीवित रहती हैं।
साल भर में 1 साल का एक बकरा 10 बकरियों को, 2 साल का 25 को, 3 साल का 50 को और 4 साल का 107 बकरियों को गाभिन कर सकता है यदि बकरे को बकरियों के झुंड में चरने के लिए ना भेजा जाए तो बकरा 10 वर्ष तक प्रजनन कार्य कर सकता है अन्यथा वह 3 से 4 वर्ष में बेकार हो जाता है।

प्रजनन कार्य के लिए बकरे का चुनाव:-

प्रजनन कार्य के लिए बकरे का चुनाव करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना जरुरी होता है।

  • बकरे में उसकी नस्ल के सभी गुण विद्यमान होने चाहिए और बकरा स्वस्थ्य तथा पर्याप्त शक्ति वाला होना चाहिए।
  • बकरे की छाती उभरी हुई, चौड़ी तथा भरी हुई होनी चाहिए और आंतें लचीली होनी चाहिए।
  • बकरे का पिछला भाग अलग-अलग होना चाहिए और अण्डकोष अच्छी तरह विकसित तथा लटके हुए होने चाहिए।
  • शरीर लम्बा और भरा हुआ तथा टांगों की हड्डियां मजबूत होनी चाहिए।
  • प्रजनन के उपयोग में लाने के समय बकरे की आयु एक वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।

बकरियों के प्रजनन की मुख्य बातें:-

  • एक वर्ष में एक ब्यांत लेना ठीक रहता है क्योंकि इससे बच्चे स्वस्थ्य रहते हैं और दूध भी ज्यादा दिनों तक मिलता है।
  • बकरियों का 14 से 18 महीने की उम्र में बकरे से मेल कराना अच्छा रहता है बकरी की पहली ब्यांत लगभग दो साल की उम्र में होनी चाहिए।
  • मई-जून के महीने में बकरी का प्रजनन कराना अच्छा रहता है।
  • तीन महीने की उम्र में नर और मादा बच्चों को अलग-अलग कर देना चाहिए।
  • आमतौर पर प्रसव के 6 से 8 सप्ताह बाद ही बकरी गर्मी पर आती है। उसका यह काल ग्याभिन होने तक 18 से 21 दिनों के अंतर से आता रहता है।
  • गर्मियों में बकरी आमतौर पर 24 से 48 घण्टे तक गर्मी पर रहती है। तथा सर्दियों में वह 18 से 26 घण्टे तक ही गर्म रह पाती है।
  • बकरी में गर्मी के लक्षण दिखाई देने के 10 से 15 घण्टे बाद उसका बकरे से मेल कराना अच्छा रहता है।
  • सामान्य प्रजनन काल में एक बार व बेमौसम प्रजनन के लिए दो बार मेल कराना अच्छा रहता है।
  • बकरी का औसतन गर्भकाल 151 दिन का होता है।
  • बकरी गर्मी पर है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए बकरे को सुबह के समय बकरियों के झुण्ड में छोड़ देना चाहिए।

सामान्य तौर पर बकरी की आयु 12 वर्ष होती है वर्ष में एक ब्यांत लेने पर बकरी अगले ब्यांत तक दूध देती रहती है। पांच से सात साल की उम्र तक में बकरी पूरी जवानी पर मानी जाती है। और चौथे या पांचवें ब्यांत में बकरी सबसे ज्यादा दूध देती है।

बकरी में गर्मी के लक्षण:-

  • बकरी खाना छोड़ देती है और बेचैन सी दिखाई देती है। तथा पूंछ हिलाती है तथा एक विशेष प्रकार से मिमयाती है।
  • बकरी के योनि द्वार पर सूजन होती है तथा लाल कलर की नजर आती है।
  • अचानक दूध की मात्रा घट जाती है।
  • रस्सी तोड़कर भागने की कोशिश करती है और दूसरी बकरियों पर चढ़ती है।
  • कुछ बकरियां संकोची स्वभाव की होती हैं उनकी गर्मी का पता नहीं लग पाता केवल एक ही लक्षण दिखाई पड़ता है और वह है योनि द्वार पर लाल रंग का होना ऐसी बकरियों पर सावधानीपूर्वक निगाह रखनी चाहिए उन्हें प्रजनन काल में प्रतिदिन बकरे के पास छोड़ देना चाहिए।

नर बच्चों को बधिया करना:-

नर बच्चों को, जिन्हें प्रजनन के काम में नहीं लाना हो छोटी उम्र में ही बधिया कर दिया जाता है इस काम के लिए छोटे आकार का बर्डिजो कैस्ट्रेटर नामक यंत्र काम में लाया जाता है इसे यंत्र से 6 महीने की उम्र के बच्चों को बधिया करते हैं इसके कुछ महत्वपूर्ण लाभ हैं।

  • बधिया बकरों को अच्छी प्रकार से खुराक मिलने पर उनकी चर्बी बढ़ती है और मांस की क्वालिटी भी बढ़ती है।
  • बधिया किए गए बच्चों पर बड़ी जल्दी मांस चढ़ता है और इसलिए उनका बाजार मूल्य बहुत अच्छा रहता है।
  • बधिया किए गए बच्चे बकरियों को तंग नहीं करते हैं।

सींग रोधन:-

नर बच्चों का 02 से 05 दिन की उम्र में और मादा बच्चों का 12 दिन की आयु तक कास्टिक सोडा या विद्युत डिहॉर्नर कके प्रयोग से सींग रोधन कर दिया जाता है। वयस्क बकरियों के सींगो को केवल सर्दी के समय में ही काटना चाहिए।

चिन्हित करना:-

बकरियों में अगर आप अपनी बकरियों के पहचान करना चाहते हैं। तो उसके लिए कानों पर संख्या छेदकर, कान पर टैग बांधकर या कान को वी (v) आकार में काट कर पहचान स्थापित कर सकते हैं।

बकरियों में उम्र का निर्धारण:-

  • बकरियों की उम्र उनके दांत को देखकर निर्धारित की जाती है, पूरी विधि आगे दी गई है।
  • जन्म के समय सामने वाले सभी 8 दांत निचले जबड़े में उपस्थित होते हैं ऊपर के जबड़े में कोई दांत नहीं होते हैं।
  • 12 से 14 महीने की उम्र में बीच का एक जोड़ा दांत गिर जाता तथा उनके स्थान पर स्थाई दांत आते हैं।
  • 24 से 26 महीने की उम्र में दूध के 2 दांत और टूट जाते हैं जिनके स्थान पर स्थाई दांत आ जाते हैं।
  • 26 से 38 महीने की उम्र में दूध के दो और दांत टूट कर मुंह में स्थाई दांतो की संख्या ले लेते हैं और अब स्थाई दातों की संख्या 6 हो जाती है।
  • 40 से 50 महीने की आयु में किनारे के शेष 2 दूध के दांत भी गिर जाते हैं और चार जोड़ा यानी कि 8 स्थाई दांत बन जाते हैं।

बकरियों के खुर संवारना:-

बकरियों के खुर बहुत जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं अतः प्रत्येक महीने में निश्चित समय पर खुरों को कांट-छांट कर सुव्यवस्थित करते रहना चाहिए। नहीं तो बकरियों का स्वास्थ्य तथा दूध का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होता है।

बच्चों की देखभाल:-

  • बच्चे के पैदा होते ही उसकी नाल साफ कर देनी चाहिए। और नाल को काटकर उसमें टिंचर आयोडीन लगा देनी चाहिए बच्चे को उसकी मां का दूध चूसने में सहायता करनी चाहिए।
  • बकरियों की बच्चों की आगे दिए गए प्रकार से देखभाल करनी चाहिए।
  • बच्चों को नियमित रूप से दूध तथा अन्य भोजन देने चाहिए। उन्हें एक चम्मच अरंडी का तेल दें दें जिससे उनका पेट एक बार साफ हो जाए।
  • सर्दियों में बच्चों को सर्दी से बचाना बहुत ही जरुरी होता है।
  • बच्चों को उनकी जरुरत के अनुसार दूध की मात्रा देनी चाहिए।
  • पीने के लिए स्वच्छ और ताजा पानी देना चाहिए।
  • बच्चों में दस्त लगने पर तुरन्त उपचार करना चाहिए तथा बच्चों में जूं नहीं लगने देने चाहिए, इसके लिए हर 10 दिन बाद गैमक्सिन दवाई का बुरकाव करना चाहिए।
  • बच्चों को कीड़े आदि से बचाने के लिए सभी उपायों को अपनाना चाहिए।

बकरियों का निवास:-

बकरियों के लिए किसी बड़े बाड़े की आवश्यकता नहीं होती है। बकरियां साधारण स्थान में आराम से रह सकती हैं निवास स्थान का निर्माण कराते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह सूखा यानी कि नमी रहित, स्वच्छ और खुला हुआ हो जंगली पशुओं से सुरक्षित हो और गर्मी, बरसात और सर्दियों के मौसम से बचाव प्रदान करता हो।
प्रत्येक बकरी के लिए लगभग 1 वर्ग मीटर जगह पर्याप्त होती है यदि बकरियां कम हों तो इन्हें इकहरी पंक्ति में बांधा जाना चाहिए अधिक संख्या होने पर उन्हें दोहरी पंक्ति में बांधा जा सकता है।
बकरियों के लिए चरही की ऊंचाई 15 सेंटीमीटर और चौड़ाई 40 सेंटीमीटर पर्याप्त होती है बाड़े का फर्श भूमि से 15 सेंटीमीटर ऊंचा हो और चरही से नाली तक 8 सेंटीमीटर का ढाल हो जिससे कि सारा मूत्र बहकर नाली में चला जाए फर्श साफ और सूखा होना चाहिए हवा और बौछारों को रोकने के लिए एक दीवार का भी होना जरुरी है।
दो बकरियों के लिए 03 मीटर लम्बा और 1.5 मीटर चौड़ा बाड़ा पर्याप्त रहता है। नर पशु 2.5 × 2.0 मीटर के बाड़े में अकेले ही रखे जाने चाहिए। खुला बाड़ा, जिसका आकार 12मीटर × 18मीटर हो, उसमें 100 बकरियों को रखा जा सकता है।
बकरों का बाड़ा बकरियों के बाड़े से कम से कम 16 मीटर की दूरी पर होना ही चाहिए। उनका निवास स्थान तो बकरियों जैसा ही बनाया जाता है, लेकिन बकरों के बाड़े में बकरों के व्यायाम का समुचित प्रयोग करना चाहिए। इस कार्य के लिए किसी छायादार पेड़ के नीचे या तो रेत के टीले बना दिए जाते हैं, या तो पत्थर की सिल्लियां गाड़ दी जाती हैं। जिससे कि बकरे इनके द्वारा उछल-कूद कर सकें। और बकरियों को इन्ही में लाकर ग्याभिन किया जाता है।

बकरी का दूध:-

बकरी का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है इससे अनेक प्रकार के उत्पाद बनाए जाते हैं, जैसे: पनीर, योगहर्ट, खोआ, छेना आधारित उत्पाद, घी, छाछ, पेय दूध पाउडर, आदि।
बकरी के दूध में गाय के दूध की तुलना में विटामिन बी-6 तथा बी-12, सी, डी की मात्रा कम पाई जाती है। जिसके कारण यह छोटे बच्चों में एलर्जी नहीं करता है।
बकरी के दूध में एक विशेष प्रकार की दुर्गंध आती है, जो कि दूध दुहते समय बकरे के पास बंधे होने के कारण आती है। बकरे की गर्दन की त्वचा में कुछ ऐसी ग्रंथियां होती हैं, जिससे कि कैप्रिक एसिड नामक दुर्गंध युक्त अम्ल निकलता है और इस दुर्गंध को दूध जल्दी ही सोख लेता है। जिसके कारण दूध बहुत महकने लगता है। अतः स्वच्छता का थोड़ा सा भी ध्यान रखा जाए, बकरे को बकरी के साथ में नहीं रहने दिया जाए। मतलब कि बकरी दुहते समय बकरे को कम से कम 16 मीटर दूरी पर बांध दिया जाए। तो फिर बकरी के दूध में दुर्गंध नहीं आती है। और केवल विशेषज्ञ ही गाय और बकरी के दूध में पहचान कर सकेंगे।

बकरी और गाय के दूध का औसत संघटन:-

क्र•सं•संघटक पदार्थगाय का दूधबकरी का दूध
1.वसा4.144.25
2.प्रोटीन3.583.52
3.दुग्ध शर्करा4.964.27
4.खनिज लवण0.710.86
5.जल86.6187.10

बकरी पालन में लाभ:-

कई त्यौहारों (जैसे: बकरीद, ईद, आदि) के मौके पर बकरियों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। शुरूआत में आपका लाभ आपकी बकरियों की संख्या तथा उनकी सुविधा आदि के आधार पर निर्भर करता है। यह लाभ हर एक वर्ष बढ़ता जाता है। बकरियाँ जितनी अधिक बच्चे पैदा करती हैं, उतना अधिक लाभ प्राप्त होता है।

सरकार की तरफ से आर्थिक मदद:-

सरकार की तरफ से कृषि और पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएँ चलाई जाती हैं। यह योजनाएं कभी राज्य सरकारेंलाती हैं तो कभी केन्द्र सरकार!
हरियाणा सरकार ने भी मुख्यमंत्री भेड़ पालक उत्थान योजना को शुरू किया था, अतः आप अपने राज्य में चल रहे ऐसी योजनाओं का पता लगा कर लाभ उठा सकते है। इसके अलावा आपको नाबार्ड की तरफ से भी आर्थिक मदद प्राप्त हो सकती है। अतः नाबार्ड में आवेदन देकर ऋण और अच्छा अनुदान पाया जा सकता है।

पंजीकरण या रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया:-

आप अपने फर्म का रजिस्ट्रेशन एमएसएमई अथवा उद्योग आधार की सहायता से कर सकते हैं। आगे उद्योग आधार द्वारा फर्म के पंजीकरण की जानकारी दी गई है।

  • आप उद्योग आधार के अंतर्गत ऑनलाइन पंजीकरण करा सकते हैं, इसके लिए ऑनलाइन वेबसाइट (udyogaadhar.gov.in) पर जाना होगा।
  • यहाँ पर आपको अपना आधार नंबर और नाम देने की जरुरत होती है।
  • नाम और आधार संख्या दे देने के पश्चात आप ‘वैलिडेट आधार’ पर क्लिक करें। इस प्रक्रिया से आपका आधार वैलिडेट हो जाता है।
  • इसके बाद में आपको अपना नाम व कंपनी का नाम तथा कंपनी का पता, राज्य, जिला, पिन नम्बर, मोबाइल नम्बर, बिजनेस ई-मेल, बैंक डिटेल्स, एनआईसी कोड आदि देने की जरुरत होती है।
  • इसके बाद में कैप्चा कोड डाल कर सबमिट बटन पर क्लिक करें।
  • इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद आपका एमएसएमई की तरफ से एक सर्टिफिकेट तैयार हो जाता है। आप इस सर्टिफिकेट का प्रिंट लेकर अपने ऑफिस में लगा सकते हैं।

मार्केटिंग कैसे करें:-

बकरी पालन के व्यावसाय को चलाने के लिए मार्केटिंग की बहुत अधिक जरुरत होती है। इसलिए आपको डेयरी फार्म से लेकर माँस के दुकानों तक तेजी से अपना व्यापार पहुंचाना होता है। आप अपने बकरियों से प्राप्त दूध को विभिन्न डेयरी फार्म तक पहुँचा सकते हैं। इसके अलावा मांस की दुकानों में इन बकरियों को बेच कर अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। भारत में बहुत बड़ी संख्या में लोग मांस को खाना पसंद करते हैं। इसीलिए माँस के बाजार में इसका बिजनेस आसानी से हो सकता है।

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