दोस्तों,किसान भाइयों इस लेख में बात करने वाले हैं शलजम की खेती की!
शलजम की खेती भारत में काफी समय से होती चली आ रही है गाजर और मूली के समान शलजम भी एक रूपांतरित जड़ है जो अपने अंदर भोजन को इकट्ठा करके मोटी हो जाती है आयुर्वेद की दृष्टि से यह रुक्षतानाशक और रक्तशोधक है इसकी सब्जी क्षुधावर्धक होती है
जलवायु:-
शलजम मुख्य रूप से ठंडी ऋतु की फसल है इसको बर्फीली स्थितियों में भी उगाया जा सकता है बढ़िया कंद और रंग के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस ताप सही रहता है देसी किस्मों को आमतौर पर गर्मियों में उगाया जाता है।
भूमि:-
किसान भाइयों गाजर और मूली के समान शलजम के लिए भी बलुई अथवा बलुई दोमट भूमि बहुत अच्छी रहती है लेकिन इसको मृत्तिका दोमट भूमि में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
भूमि की तैयारी:-
किसान भाइयों शलजम के लिए खेत को एक बार मिट्टी पलट हल से गहरा जोतना चाहिए और इसके बाद में 3 से 4 जुताइयां देशी हल से करनी चाहिए और प्रत्येक जुताई के बाद में खेत में पटेला को घुमाकर मिट्टी को भुरभुरी कर देनी चाहिए।
खाद और उर्वरक:-
किसान भाईयों अगर आप शलजम की बहुत अच्छी उपज लेना चाहते हैं तो खेत की तैयारी करते समय उसमें 200 क्विंटल गोबर की खाद डालनी चाहिए। तथा बाद में उर्वरक भी डालने चाहिए। जैसे कि: नाइट्रोजन 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर व फॉस्फोरस 50 किलोग्राम तथा पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए।
बुवाई का समय:-
किसान भाईयों मैदानी क्षेत्रों में बुवाई किस्म के अनुसार अगस्त से दिसम्बर तक की जाती है एशियाई अथवा देशी किस्में पहले यानी कि अगस्त से सितम्बर तक तथा विदेशी या विलायती किस्में बाद में यानी कि अक्टूबर से दिसम्बर तक बोई जाती हैं। अगर पहाड़ी क्षेत्रों की बात की जाए तो वहां बुवाई मार्च से मई तक करते हैं। शलजम लगातार पाने के लिए हमें शलजम की बुवाई 15 – 15 दिन के अंतर से करनी चाहिए। जैसे कि अगर आप 1 हेक्टेयर में बुवाई कर रहे हैं तो उस खेत को 3 या 4 भागों में बांट लेना चाहिए और तीनों अथवा चारों भागों में 15 – 15 दिन बाद बुवाई करें तो इससे बाजार में बेचने में बेचने में आसानी रहती है और भाव भी अच्छा मिलता है।
बीज की मात्रा:-
किसान भाईयों 1 हेक्टेयर में शलजम बोने के लिए उसकी बीज की मात्रा 3 से 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है।
बीज बोने का तरीका:-
शलजम का बीज उथले वाले हल की सहायता से 20 से 25 सेमी की दूरी पर बने हुए कूड़ों में बोया जाता है तथा पौधे से पौधे की दूरी की बात करें तो उसकी दूरी 8 से 10 सेमी रखी जाती है लेकिन पहले जब बीज को बोना चाहिए तो बीज को पक्तियों में डेढ़ से दो सेंटीमीटर के फासले पर बोना चाहिए। और जब पौधे बढ़कर लगभग 3 पत्तियों के हो जाएं तो फालतू के पौधों को निकालकर उनकी आपस की दूरी 10 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए। और जो बीज बोने की गहराई हो वो डेढ़ से दो सेंटीमीटर की होनी चाहिए। लेकिन शलजम की अच्छी से अच्छी उपज लेने के लिए इसको 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बनाई गई मेड़ों पर ही बोना चाहिए। कहीं कहीं पर शलजम को मेड़ों पर भी बोया जाता है तो मेड़ों की ऊंचाई 15 से 30 सेंटीमीटर रखी जाती है और मेड़ के ऊपर या कह सकते हैं कि सिर पर 4 सेंटीमीटर की गहरी कूंड़ बनाई जाती है और इसी कूंड़ में बीज डालकर उसे मिट्टी से ढक दिया जाता है।
शलजम की उन्नत किस्में:-
किसान भाईयों अगर शलजम की किस्मों की बात की जाए तो अपने क्षेत्र के मौसम और मिट्टी के हिसाब से ही किस्मों का चुनाव करना चाहिए। ताकि अच्छी से अच्छी पैदावार हो सके। तो कुछ किस्में नीचे दी हुई हैं।
यूरोपियन: पूसा स्वर्णिमा, पूसा चंद्रिमा, गोल्डन बाल, स्नोवाल, आदि।
एशियाई: पूसा कंचन, पूसा श्वेती, पंजाब सफेद, आदि।
शलजम की खेती में सिंचाई:-
किसान भाईयों अगर शलजम की सिंचाई की बात की जाए तो इसकी सिंचाई 15 से 20 दिन के अंतर से की जानी चाहिए लेकिन सिंचाई करते समय इस बात का भी बहुत ध्यान रखना चाहिए कि सिंचाई हल्की ही करें। और जैसा कि हमने पहले बताया कि कहीं कहीं पर बीज मेड़ों पर भी बोया जाता है तो वहां सिंचाई ऐसी करनी चाहिए कि मेड़ें पानी में न डूब पाएं।
शलजम की खेती के लिए निकाई व गुड़ाई:-
अगर शलजम की निकाई तथा गुड़ाई की बात करें तो शलजम के खेत को 2 से 3 बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है और यदि खेत में कहीं भी पौधों की संख्या घनी हो जाए तो फालतू के पौधों को निकाल देना चाहिए और उनकी दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए। और अगर शलजम के पौधों की जड़ें बाहर निकल आईं हों तो उन्हें मिट्टी से ढक देना चाहिए।
शलजम के प्रमुख खरपतवार तथा उनका नियंत्रण:-
किसान भाईयों शलजम के खरपतवारों को नष्ट करने के लिए कम से कम 2 बार निकाई – गुड़ाई करना आवश्यक है। और निकाई गुड़ाई से ही खरपतवार समाप्त हो जाते हैं।
शलजम की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग तथा उनका नियंत्रण:-
शलजम की फसल या खेती में निम्नलिखित रोग लगते हैं।
आर्द्र विगलन (Damping off):
इस रोग के लगने पर मुख्य रूप से बीज का अंकुरण ही नहीं होता है और अगर अंकुरण हो भी जाता है तो बीजांकुर भूमि से बाहर निकलने पर गलने लगता है। अगर पौधा निकल आया है तो इस रोग के लगने पर पौधा अचानक गिर पड़ता है और सड़ जाता है।
रोकथाम: सिंचाई हल्की करनी चाहिए।
सफेद रतुआ (White Rust):
इस रोग के लग जाने पर पौधे की पत्तियों में सफेद रंग के फफोलेदार धब्बे बन जाते हैं। और जब रोग अपनी चरम सीमा पर होता है तो अनेक धब्बे मिलकर बड़े आकार के उभरे हुए धब्बे बनाते हैं।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए दो से तीन वर्ष का फसल – चक्र अपनाना चाहिए। फसल चक्र में मूली तथा सरसों शामिल नहीं करनी चाहिए।
आल्टरनेरिया पर्ण चित्ती (Alternaria leaf spot):
इस रोग के हो जाने पर पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के गोल – गोल धब्बे बनते हैं, जिनके चारों तरफ पीलापन होता है इन धब्बों पर चमकदार रेखाएं भी बनी होती हैं। कभी – कभी जब धब्बे आपस में मिल जाते हैं तो वो पूरी पत्तियों पर धब्बे या चित्तियां बना लेते हैं।
रोकथाम: बीज को शोधन के बाद ही बोना चाहिए।
मृदु विगलन (Soft Rot):
यह रोग बड़ा ही भयंकर होता है क्योंकि इस रोग का आक्रमण शुरू की अवस्था में ही हो जाता है जिसके कारण जड़ें सड़ने लगती हैं यह रोग एक जीवाणु (bacteria) द्वारा होता है। निचले क्षेत्रों में बोई गई शलजम की फसल पर इसका प्रकोप अधिक होता है।
रोकथाम: खेत में जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। तथा इस रोग के लग जाने पर नाइट्रोजनधारी उर्वरकों की टॉपड्रेसिंग नहीं करनी चाहिए।
नोट: अगर शलजम की फसल को बोने से पूर्व ही उसके बीजों का शोधन कर लिया जाए तो उसमें लगने वाले रोगों की संभावना कम हो जाती है।
शलजम की खेती में लगने वाले प्रमुख कीड़े और उनका नियंत्रण:-
शलजम की फसल या खेती में मुख्य रूप से उन्हीं कीड़ों का आक्रमण होता है जिन कीड़ों का आक्रमण मूली की खेती में होता है। प्रमुख कीड़े निम्नलिखित हैं।
माहू (चैंपा):
ये पीले हरे रंग के छोटे – छोटे कीड़े होते हैं जो पत्तियों तथा तने का रस चूसकर फसल को कमजोर बना देते हैं जिससे पौधे पीले पड़ जाते हैं इन कीड़ों का आक्रमण तब और अधिक होता है जब मौसम में नमी होती है अथवा आकाश में बादल छाए रहते हैं।
आरा मक्खी (Saw fly):
इस मक्खी की सुंडी अक्टूबर से मार्च तक शलजम की पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है यह गहरे हरे तथा काले रंग की sundi होती है इसके शरीर के ऊपर पांच लम्बी धारियां होती हैं इस मक्खी का प्रकोप सुबह और शाम को अधिक होता है
डायमंड बैक मौथ:
इस कीट की गिडारें पत्तियों में छेद करके खाती हैं जिसके कारण पत्तियों की केवल नशें ही शेष बचती हैं अगर पत्तियों को धीमे – धीमे हिलाया जाए तो छोटी – छोटी हरी या स्लेटी रंग की सुंडियां नीचे गिरती हैं इनका आक्रमण अगस्त से दिसम्बर तक अधिक होता है।
फ्ली बीटल:
यह कीड़ा छोटा सा नीला – हरा तथा चमकीला होता है जिसकी बीटल मुलायम पत्तियों को काटकर उनमें छेद बना देती हैं और रस को चूसती हैं परिणामस्वरूप पौधा कमजोर हो कर पीला पड़ जाता है।
नोट: इन सभी कीड़ों की रोकथाम के लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह अथवा किसी बीज भण्डार वाले की सलाह से ही कोई कीट नियंत्रण रसायन का प्रयोग करें।
शलजम की खेती में आने वाली समस्याएं:-
किसी भी फसल अथवा खेती में कुछ न कुछ समस्याएं तो आती ही हैं वैसे ही शलजम की खेती में कुछ समस्याएं आती हैं जैसे कि जिन जगहों पर पानी की समस्या है तो वहां सिंचाई की समस्या होगी और रोग तथा कीड़ों की समस्याएं आती हैं और अगर आपके आस-पास बाजार नहीं है तो थोड़ी सी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
शलजम की खुदाई:-
किसान भाईयों शलजम को उस समय पर खोदना चाहिए या उखाड़ना चाहिए जब उनकी मोटाई 7 से 8 सेंटीमीटर की हो। अगर खुदाई में देरी होती है तो फिर खासतौर से यूरोपियन किस्मों में जड़ें रेशेदार हो जाती हैं और फटने भी लगती हैं तथा पोली तो हो ही जाती हैं।
शलजम की उपज:-
किसान भाईयों अगर शलजम की उपज की बात की जाए तो इनकी उपज औसतन 200 से 250 कुंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है।
शलजम की फसल का बीज तैयार करना:-
किसान भाईयों शलजम का बीज उत्पादन करने के लिए नवम्बर में ही बढ़िया पौधों को छाटकर जड़ का नीचे का आधा भाग काटकर अलग कर दिया जाता है और ऊपर का आधा भाग तैयार खेत में 60 – 60 सेंटीमीटर की दूरी पर रोप दिया जाता है पत्तियों का आधा भाग भी काटकर अलग कर दिया जाता है शलजम की रोपी गई गांठों में से जड़ और शाखाएं निकलती हैं जिनमें फूल, फल और बीज लगते हैं। फिर बीजों के पक जाने के बाद उन्हें निकालकर सुखा लिया जाता है और पूरी सावधानी से बंद बोतलों में रख दिया जाता है शलजम का बीज उत्पादन करते समय यह जरूर ध्यान देना चाहिए कि दो भिन्न – भिन्न किस्मों की आपस में दूरी 1000 मीटर अथवा 1 किलोमीटर हो ताकि शलजम का शुद्ध बीज प्राप्त किया जा सके।
शलजम की फसल को कैसे और कहां बेचें:-
किसान भाईयों शलजम की फसल को बेचने के लिए आप या तो खेत से ही किसी थोक खरीददार व्यापारी को बेच सकते हैं या तो फिर पास के किसी बाजार में भी थोक में या फुटकर में बेच सकते हैं अगर आपकी फसल थोड़ी है तो आप फुटकर बेचकर थोक से ज्यादा पैसा कमा सकते हैं।
तो किसान भाईयों आपने पढ़ा कि शलजम की खेती किस प्रकार करते हैं अगर लेख पसंद आया हो तो लाल घंटी को क्लिक करके subscribe करें ताकि आने वाले और लेखों की सूचना आपको सबसे पहले मिले और लेख कैसा लगा कॉमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।
प्रश्न और उत्तर (F&Q):-
प्रश्न:- शलजम की फसल से हम मोटा धन कमा सकते हैं?
उत्तर:- शलजम की फसल बोकर आप काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं लेकिन कमाई आपकी आपके एरिया और बाजार पर भी निर्भर करती है और फसल ज्यादा भी होनी चाहिए।
प्रश्न:- शलजम की खेती के लिए कौन सा बीज अच्छा उत्पादन देता है?
उत्तर:- शलजम की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए आप अपने क्षेत्र के मौसम और मिट्टी के अनुसार ही बीज का चुनाव कीजिए क्योंकि बीज की किस्म के अनुसार ही केवल अच्छा उत्पादन नहीं होता है बल्कि अच्छा उत्पादन मिट्टी, मौसम, आदि पर भी निर्भर करता है।
प्रश्न:- शलजम की फसल में लगने वाला सबसे खतरनाक रोग कौन सा है?
उत्तर:- शलजम की खेती में लगने वाला सबसे खतरनाक रोग मृदु विगलन है क्योंकि इस रोग का आक्रमण शुरू की अवस्था में ही हो जाता है। इसे अंग्रेजी भाषा में soft rot भी कहते हैं।
प्रश्न:- शलजम को कब बोना चाहिए?
उत्तर:- शलजम को अगस्त से दिसम्बर तक बोया जा सकता है अगर आप अगेती फसल करते हैं तो बाजार में अच्छा भाव मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है।