काकरेज गाय की नस्ल को बन्नाई, वगदिया, वाढेर, नागू और सनेहोर भी कहा जाता है इस नस्ल के शुद्ध पशु गुजरात तथा सिंध में पाए जाते हैं आइये जानते हैं इस गाय से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों को.
इस नस्ल के कुछ शुद्ध पशु कुछ फार्मों पर भी पाए जाते हैं जो आगे दिए गए हैं.
- पशु प्रजनन फार्म, भुज, गुजरात
- पशु प्रजनन फार्म, मांडवी, गुजरात
- पशु अनुसन्धान केंद्र, दांतिवाना कैंपस, गुजरात
काकरेज पशुओं के लक्षण और पहचान
काकरेज गाय को उसके रंग, रूप और आकार तथा शारीरिक माप के आधार पर पहचाना जा सकता है.
काकारेज गाय का रंग
काकरेज गायों का रंग सिल्वर ग्रे, आयरन ग्रे या काला होता है इन पशुओं की पूँछ में झब्बा काले रंग का पाया जाता है.
काकरेज गाय का रूप और आकार
काकरेज भारत की सबसे भारी नस्ल मानी जाती है इस नस्ल के पशु अधिक शक्तिशाली माने जाते हैं इनका ललाट चौड़ा और मध्य में थोड़ा सा भीतर की ओर झुका हुआ होता है इन पशुओं के सींग मजबूत और मुड़े हुए होते हैं ये सींग अपेछाकृत अधिक ऊंचाई तक खाल से ढके हुए होते हैं इन पशुओं की छाती चौड़ी और पीठ सीधी होती है इनका अयन सामने की और बहुत बढ़ा हुआ होता है लेकिन पीछे की ओर कम रहता है.
काकरेज पशुओं की शारीरिक माप
अगर बात करें कांकरेज गाय की तो इन गायों की ऊंचाई लगभग 132 सेमी, लम्बाई करीब 147 सेमी, परिधि करीब 180 सेमी और वजन लगभग 480 किलो होता है और अगर कांकरेज सांडों को देखें तो इनकी ऊंचाई करीब 137 सेमी, लम्बाई 155 सेमी, परिधि 190 सेमी और इनका वजन करीब 540 किलो होता है.
कांकरेज पशुओं की उपयोगिता
इस नस्ल को दुकाजी नस्ल के अंतर्गत रखा गया है क्योंकि सांडों को भारवाही काम कराने में अधिक उपयोग किया जाता है इसके साथ ही इस नस्ल की गायें अच्छा दूध उत्पादन भी करती हैं.
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कांकरेज गाय का दूध
कांकरेज गाय का औसत दूध उत्पादन करीब 1200 से 1350 किलो तक होता है लेकिन उन्नत डेरी फार्मों में इस गाय ने लगभग 1500 किलो तक भी दूध का उत्पादन किया है.
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