बैंगन को कई प्रकार की जलवायु में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है यही कारण है कि भारत में बैंगन की एक वर्ष में तीन तीन फसलें तक ली जाती हैं और इसका कारण एक ये भी है कि भारत में बैंगन की मांग भी अधिक है और इस मांग का आप फायदा उठा सकते हैं, अगर आप एक किसान है; तो आप बैंगन की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते है.
लेकिन आज के समय भारत में किसान बैंगन की खेती से उतना अच्छा मुनाफा नहीं कमा पा रहे है क्योंकि वो वैज्ञानिक तरीके से बैंगन की खेती नहीं करते हैं लेकिन आप अब चिंता न करें क्योंकि हम आगे जानेंगे कि बैंगन की वैज्ञानिक खेती कैसे करें वो भी आपकी सरल भाषा में!
कैसी चाहिए मिट्टी
वैसे तो बैंगन की खेती के लिए सभी तरह की मिट्टी को अच्छा माना जाता है लेकिन इसकी सफलता पूर्वक खेती करने के लिए बलुई दोमट या दोमट भूमि की मिट्टी को अच्छा माना जाता है और अच्छी पैदावार के लिए खेत की मिट्टी का ph मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए.
खेत की तैयारी
अगर आप बैंगन की खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए खेत को अच्छी तैयारी की जरुरत होती है जिसके लिए मिट्टी पलट हल से गहरी जुताई करने के बाद में खेत में 5 से 6 जुताइयाँ देशी हल से करनी चाहिए.
और अगर उपलब्ध हो तो 200 से 250 क्विंटल गोबर की खाद को खेत तैयार करने की शुरुआती अवस्था में ही देना चाहिए इसके आलावा 50 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फॉस्फोरस और 50 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देने के लिए उर्वरकों का प्रयोग करते हैं इन उर्वरकों को खेत में आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देते हैं.
बैंगन की उन्नत किस्में
बैंगन की उन्नत किस्मों को उनके फलों के आकर के अनुसार दो वर्गों में बांटा गया है- लम्बा बैंगन और गोल बैंगन!
लंबे फलों वाली किस्मों में पूसा पर्पल लांग, पूसा अनमोल, पूसा क्रांति, पूसा पर्पल क्लस्टर और पंत सम्राट जैसी किस्में शामिल हैं वहीं गोल फलों वाली किस्मों में पूसा पर्पल राउंड, टाइप 3, पंजाब बहार, पंत ऋतुराज और पूसा उपकार जैसी किस्में शामिल हैं. वहीं अगर बैंगन की संकर किस्में देखी जाएं तो उनमें पंत संकर बैंगन 1, पूसा हाइब्रिड 1, पूसा हाइब्रिड 6, नरेंद्र देव हाइब्रिड 1 और आजाद हाइब्रिड 1 शामिल हैं.
लेकिन आप किसी भी किस्म का चुनाव करने से पहले अपने क्षेत्र की जलवायु आदि देख लें और अपने इलाके के अनुकूल ही किस्म का चुनाव करें.
बीज की मात्रा
बैंगन के बीज को पहले नर्सरी में बोकर पौध तैयार करते हैं और एक हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त मानी जाती है.
बुवाई का समय
जैसा कि हमनें पहले बताया कि भारत में एक वर्ष में बैंगन की तीन फसलें ली जाती हैं तो तीनों का समय भी भिन्न भिन्न है.
सर्दी की फसल
सर्दी में बैंगन की फसल लगाने के लिए जून से जुलाई में बैंगन को नर्सरी में लगा देते हैं और रोपाई जुलाई से अगस्त के बीच में करते हैं.
गर्मी की फसल
अब अगर आप गर्मी की फसल लेना चाहते हैं तो उसके लिए अक्टूबर से नवंबर में उसके लिए बीज बो देते हैं और पौध की रोपाई नवंबर से दिसंबर के अंत में की जाती है.
बरसात की फसल
इस मौसम में बैंगन की फसल के लिए मार्च में नर्सरी में बीज बोए जाते हैं और अप्रैल से मई में पौध की रोपाई की जाती है.
खाद और उर्वरक
50 किलो नाइट्रोजन को दो बार में रोपाई के 30 दिन बाद और 60 दिन बाद देनी चाहिए और नाइट्रोजन की मात्रा को देने के पहले या बाद में हल्की सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए.
सिंचाई व्यवस्था
किसी भी फसल में सिंचाई मौसम और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है आमतौर पर गर्मियों में 7 से 8 दिनों के अंतर पर और सर्दियों में 12 से 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए और बारिश के मौसम में आमतौर पर सिंचाई की जरूरत नहीं होती है बल्कि अधिक बारिश की स्थिति में खेत में भरे पानी को निकाल देना चाहिए ताकि पौधे मरने से बच जाएं.
खरपतवार नियंत्रण
बैंगन की पौध को रोपने के लगभग 50 से 60 दिन तक खेत को खरपतवार रहित रखना जरूरी होता है ताकि पौधे आराम से बढ़ सकें इसके लिए 2 से 3 निराइयों की जरूरत होती है लेकिन अगर बारिश का मौसम है तो 3 से 4 बार भी निराई करनी पड़ सकती है.
इनके अलावा रसायनिक तरीकों से भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है.
प्रमुख रोग और कीट
बैंगन की खेती में लगने वाले मुख्य कीटों में शाखा और फलबेधक, एपीलेकना बीटल, जैसिड और लाल माइट आदि कीड़े शामिल हैं जो बैंगन की फसल को काफ़ी नुकसान पहुंचाते हैं और अगर बात करें बैंगन की फसल में लगने वाले मुख्य रोगों के बारे में तो उनमें आर्द्र पतन, फल सड़न, छोटी पत्ती रोग, लीफ स्पॉट और मूल ग्रंथि रोग आदि शामिल हैं.
बैंगन की अधिक उपज कैसे लें
अगर आप बैंगन की खेती से अच्छी उपज लेना चाहते हैं तो आपको यह बस छोटी सी बात समझ लेनी चाहिए कि, बैगन के पौधों में चार प्रकार के फूल आते हैं लम्बे वर्तिकाग्र वाले फूल, मध्यम वर्तिकाग्र वाले फूल, छोटे वर्तिकाग्र वाले फूल और झूठे वर्तिकाग्र वाले फूल जिनमें से केवल लम्बे और मध्यम वर्तिकाग्र वाले फूलों से ही फल बनते हैं और बाकी बचे हुए दो तरह के फूल गिर जाते हैं.
यदि 2,4 डी के घोल को 4 भाग रसायन के प्रति 10 लाख भाग पानी के घोल को फूल आते समय छिड़का जाये तो फल लगभग 40 से 50 प्रतिशत ज्यादा लगते हैं.
बैंगन में तुड़ाई और उपज
जब बैंगन का आकार बढ़ जाये और उनमें उचित रंग आने लगे तो फलों की तुड़ाई कर ली जाती है या फिर जब बैंगन के पौधों पर फल लग जाएँ उसके करीब 8 से 10 दिनों बाद फलों की तुड़ाई कर ली जाती है क्योंकि अगर आप फलों को देर से तोड़ेंगे तो बैंगन का रंग भी फीका पड़ जायेगा और वो कड़े भी हो जायेंगे.
बैंगन की औसत उपज लगभग 200 से 250 क्विंटल/हेक्टेयर होती है जबकि संकर किस्मों की उपज लगभग 350 से 400 क्विंटल/हेक्टेयर तक जाती है.
बैंगन का भण्डारण
अगर बैंगन को भंडारित करने की बात करें तो छायादार स्थान पर बैंगन के फलों को 1 से 2 दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है वहीं अगर सर्दियों के मौसम की बात करें तो 4 से 5 दिनों के लिए इनको भंडारित किया जा सकता है और बैंगन को 85 से 90 प्रतिशत की आपेच्छिक नमी तथा 7 से 10 डिग्री सेल्सियस ताप पर 8 से 10 दिन तक अच्छे से भंडारित किया जा सकता है.
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बैंगन की मार्केटिंग कैसे करें
बैंगन को अगर आप अच्छे दामों पर बेचना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको उन्हें छांटकर अलग कर लेना चाहिए जिसमें पहले ख़राब बैंगन को अलग कर लेना चाहिए उसके बाद उन्हें आकार के अनुसार भी अलग अलग कर लेना चाहिए.
अगर आप फिर और अधिक मूल्य पाना चाहते हैं तो उन्हें छोटे छोटे पैकेट में या छोटे छोटे डिब्बों में बंद कर के भी बाजार तक भेज सकते हैं अगर कहीं आप जैविक या प्राकृतिक तरीके से बैंगन की खेती करते हैं और अपने खरीददार को इसकी जानकारी और सबूत देते हैं तो आपको अपने बैंगन का मूल्य कई गुना अधिक प्राप्त हो सकता है.
बैंगन की खेती वीडियो (Baigan Ki Kheti Video)
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